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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२५

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ख़लीफ़ा-उमर

इसके बाद उमर इब्नेखत्ताब ख़लीफ़ा हुआ। इस समय इसकी आयु तिरपन वर्ष की थी। यह वही व्यक्ति था, जो पचीस वर्ष की आयु में मुहम्मद साहब का सिर काटने को घर से निकला था, परन्तु अपनी बहिन के समझाने से कट्टर मुसलमान बन गया था। वह दाहिने हाथ से जितना काम कर सकता था, उतना ही बाएँ से भी कर सकता था। धार्मिक तर्कों का उत्तर वह तलवार की धार से देता था और तर्क करने वाले का उसी दम सिर काट डालता था। उसका डील-डौल भारी था। वह बैठा हुआ भी खड़े पुरुष की बराबर माप का था। शरीर काला, आँखें लाल और सिर बिलकुल सफाचट। सदैव एक चमड़े का चाबुक हाथ में रखता था और बदमाशों तथा मुहम्मद के निन्दक कवियों को उससे पिटवाता था। उसने ख़लीफ़ा होने पर अपना नाम अमीरुल मौमनीन रक्खा। आगे चल कर पदवी के तौर पर यह नाम सभी ख़लीफ़ाओं के नामों के साथ जोड़ा जाने लगा।

इतना होने पर भी वह लूट-मार और जुल्म को नापसन्द करता था। उसने ख़लीद के अत्याचारों की अति निन्दा की, और उसे मुख्य सेनापति के पद से हटाकर उसकी जगह अबू अबीदा को मुख्य सेनापति बनाने का हुक्म भेज दिया। अबू अबीदा ने, जो खलीद के आधीन अफ़सर था, वह पत्र छिपा लिया। दुबारा हुक्म आने पर वह मुख्य सेनापति बना तथा ख़लीद उसके आधीन होकर काम करने लगा।

अब उसकी सेना जोरडन नदी के पूर्व की ओर बढ़ी और यह बात

स्पष्ट थी कि एशियामाइनर पर हाथ लगाने से पहिले पैलेस्टाइन के मज़बूत

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