पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६४ - यह पत्र वाट्सन साहब ने लिखा था। जिस समय नवाब को यह पत्र मिला, उस समय के कुछ पूर्व ही हुगली की लूट का भी वृत्तान्त मिल चुका था। नवाब अंगरेजों के मतलब को समझ गया, और अब उसने एक चिट्ठी अंगरेज़ों को लिखी- "तुमने हुगली को लूट लिया, और प्रजा पर अत्याचार किया। मैं हुगली आता हूँ। मेरी फ़ौज तुम्हारी छावनी की तरफ़ धावा कर रही है। फिर भी यदि कम्पनी के वाणिज्य को प्रचलित नियमों के अनुकूल चलाने की तुम्हारी इच्छा हो, तो एक विश्वास-पात्र आदमी भेजो, जो तुम्हारे सब दावों को समझकर मेरे साथ सन्धि स्थापित कर सके। यदि अंगरेज़ व्यापारी ही बनकर पूर्व नियमों के अनुसार रह सकें तो मैं अवश्य ही उनकी हानि के मामले पर भी विचार करके उन्हें सन्तुष्ट करूंगा। "तुम ईसाई हो, तुम यह अवश्य जानते होगे कि शान्ति-स्थापना के लिये सारे विवादों का फैसला कर डालना-और विद्वष को मन से दूर रखना कितना उत्तम है, पर यदि तुमने वाणिज्य-स्वार्थ का नाश करके लड़ाई लड़ने ही का निश्चय कर लिया है, तो फिर उसमें मेरा अपराध नहीं है। सर्वनाशी युद्ध के अनिवार्य कुपरिणाम को रोकने के लिये ही मैं यह चिट्ठी लिखता हूँ।" हुगली की लूट और नवाब को गर्मागर्म पत्र लिख चुकने पर विलायत से कुछ ऐसी खबरें आई कि फ्रेंचों से भयङ्कर लड़ाई आरम्भ हो रही है। भारतवर्ष में फैचों का जोर अंगरेजों से कम न था। अंगरेज़ों लोग अब अपनी करतूतों पर पछताने लगे। शीघ्र-ही उन्हें यह समाचार मिला कि नवाब सेना लेकर चढ़ा आ रहा है। अब क्लाइव बहुत घबराया। वह दौड़कर जगतसेठ और अमीचन्द की शरण गया । परन्तु उन्होंने साफ़ कह दिया कि नवाब अब कभी सन्धि की बात न करेगा । हुगली लूटकर तुमने बुरा किया है । परन्तु जब नवाब का उक्त पत्र पहुँचा, तो मानो अंगरेजों ने चाँद पाया उनको कुछ तसल्ली हुई। कलकत्त में वणिकराज अमीचन्द के ही महल में नवाब का दरबार लगा। आँगन का बगीचा तरह-तरह के बाग़-बहारी और प्रदीपों से सजाया गया। चारों ओर नंगी तलवार लेकर सेनापति तनकर खड़े हुए। भारी-