पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२७४

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२६५ ‘भारी बहुमूल्य रत्नजटित वस्त्र पहनकर लोग दुजानू होकर, सिर नवाकर बैठे । बीच में सिंहासन, उसके ऊपर विशाल मसनद, ऊपर सोने के दण्डों पर चन्दोवा-जिस पर मोती और रत्नों का काम हो रहा था, लगाया गया। उसी रत्न-जटित चम्पे के फूल जैसी खिली मुख-कान्ति से दीप्तमान-बंगाल, बिहार और उड़ीसा का युवक नवाब आसीन हुआ। वाट्सन और स्क्राफ्टन अंगरेज़ों के प्रतिनिधि बनकर आये । नवाब के ऐश्वर्य को देखकर क्षण-भर वे स्तम्भित रहे । पीछे हिम्मत बाँध, धीरे-धीरे सिंहासन की ओर बढ़, और सम्मानपूर्वक अभिवादन करके नवाब के सामने खड़े हुए। नवाब ने मधुर स्वर और सम्यक् भाषा में उनका कुशल-प्रश्न पूछा, और समझाकर कहा-“मैं तुम्हारे वाणिज्य की रक्षा करना चाहता हूँ, और अपने तथा तुम्हारे बीच में सन्धि-स्थापना करना ही मेरे इतना कष्ट उठाने का कारण है।" अंगरेज़ों ने झुककर कहा-"हम लोग भी सन्धि को उत्कण्ठित हैं, और झगड़े-लड़ाई से हममें बड़ी बाधाएं पड़ती हैं।" इसके बाद नवाब ने सन्धि की शर्ते तै करने को, उन दोनों के लिये दोपहर को डेरे में जाने की आज्ञा दे, दरबार बर्खास्त कर दिया। षड्यन्त्रकारियों ने देखा-काम तो बड़ी खूबी से समाप्त हो गया है। उन्होंने इस अवसर पर एक गहरी चाल खेली। अंगरेज़ दोनों सिवि- लियन थे। लड़ाई-झगड़े के नाम से बेचारे बहुत घबराते थे। बस, मानिकचन्द ने बड़े शुभचिन्तक की तरह उनके कान में कहा- "देखते क्या हो, जान बचाना हो, तो भाग जाओ। वहाँ डेरों में तुम्हारी गिरफ्तारी की पूरी-पूरी तैयारियाँ हैं । यह सब नवाब का जाल है। नवाब की तोपें पीछे रह गई हैं। इसीलिये यह धोखा दिया जा रहा है । भागो, मशाल गुल कर दो।" इतना कह, मानिकचन्द झपटकर घर में घुस गया, और दोनों अंगरेज़ हत्बुद्धि होकर भागे। उस दिन रात-भर अंगरेजों विश्राम न किया। क्लाइव जलते अङ्गारे की तरह लाल-लाल होकर सैन्य-सज्जित करने लगा। वाट्सन ने ६०० जहाजी गोरे माँगकर अपनी पैदल सेना में मिलाये, और रात के तीन