२६६ पावना रुपया हर्जाने का चुका दीजिये, वरना अनेक दुर्घटनाएँ उपस्थित होंगी..."हमारी बाक़ी फ़ौज कलकत्त पहुँचनेवाली है, ज़रूरत पड़ने पर और भी जहाज़ सेना लेकर आवेंगे, और हम ऐसी युद्ध की आग भड़का- वेंगे-जो तुम किसी तरह भी न बुझा सकोगे।' नवाब ने इस उद्धत पत्र का भी नर्म जवाब लिखकर जता दिया- “सन्धि के नियमानुसार मैं हर्जाना भेजता हूँ। मगर तुम मेरे राज्य में उत्पात मत मचाना। फ्रान्सीसियों की रक्षा करना मेरा धर्म है। तुम भी ऐसा ही करते, यदि कोई शत्रु भी तुम्हारी शरण आता। हाँ, यदि वे शरा- रत करें, तो मैं उनका समर्थन न करूंगा।" अंगरेज़ों ने समझ लिया, नवाब की सहायता या आज्ञा मिलनी सम्भव नहीं है। उन्होंने जल-मार्ग से वाट्सन की कमान में और स्थल- मार्ग से क्लाइव की अधीनता में सेनाएँ चन्दननगर पर रवाना कर दीं। ७ फ़रवरी को सन्धि-पत्र लिखा गया, और ७ ही मार्च को चन्दन- नगर के सामने अंगरेज़ी डेरे पड़ गये। इस प्रकार बाइबिल और मसीह की क़सम खाकर जो सन्धि अंगरेज़ों ने की थी, उसकी एक ही मास में समाप्ति हो गई ! फ्रान्सीसियों ने क़िले की रक्षा का पूरा-पूरा प्रबन्ध किया था। पास ही महाराजा नन्दकुमार की अध्यक्षता में सेना चाक-चौबन्द उनकी रक्षा के लिये खड़ी थी। क्लाइव, जो बड़े जोरों में आ रहा था—यह सब देखकर भयभीत हुआ। अन्त में अभागे अमीचन्द की मार्फत महाराज नन्दकुमार को भरा गया, और तत्काल वे अपनी सेना ले, दूर जा खड़े हुए। फिर मुट्ठी-भर फ्रान्सीसियों ने बड़ी वीरता से, २३ तारीख तक क़िले की रक्षा की और सब वीरों के धराशायी होने पर क़िले का पतन हुआ । इस प्रकार इस महायुद्ध में अंगरेज़ विजयी हुए ! इधर नवाब नन्दकुमार को वहाँ भेजकर इधर की तैयारी कर रहा था। अहमदशाह अब्दाली की चढ़ाई की खबर गर्म थी, और अंगरेज़ों से घूस खाकर मीरजाफ़र, जगतसेठ, रायदुर्लभ आदि नमकहरामों ने नवाब के मन में दुर्रानी के विषय में तरह-तरह की शंकायें, भय तथा विभीषिकायें भर रखी थीं। खेद की बात है, नन्दकुमार ने भी नमकहरामी की। फिर
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