1 २७१ से खुलने का साहस नहीं करते । हमारे हटते-ही युद्धानल प्रज्ज्वलित होगी।" नवाब ने सब बात समझकर भी लाचार कहा-"आप लोग भागलपुर के पास रहें, मैं बग़ावत की सूचना पाते ही आपको खबर दूंगा। सेनापति लॉन्स ने आँखों में आँसू भरकर सिर्फ इतना ही कहा-“यही अन्तिम भेंट है-अब हमारा-आपका साक्षात् न होगा।" इतना करके नवाब के नमकहरामों को दण्ड देने पर कमर कसी। मानिकचन्द पर अपराध प्रमाणित हुआ, और वह कैद रखा गया। पर, पीछे बहुत अनुनय-विनय कर, १० लाख रुपये दे, छूट गया। उसके छूटने से ही भयङ्कर षड्यन्त्र की जड़ जमी। इस उदाहरण से जगतसेठ, अमीचन्द, रायदुर्लभ आदि सभी भयभीत हुए-और जगतसेठ का भवन गुप्त-मन्त्रणा का भवन बना । जैन जगतसेठ, मुसलमान मीरगंज मीरजाफ़र, वैद्य राजवल्लभ, कायस्थ रायदुर्लभ, सूद- खोर अमीचन्द, और प्रतिहिंसा परायण मानिकचन्द–इनमें से न किसी का मत मिलता था, न धर्म; न स्वभाव, न काम ! ये केवल स्वार्थान्ध होकर एक हुए। इनके साथ ही कृष्णनगर के राजा महाराजेन्द्र कृष्णचन्द्र भूप बहादुर भी मिले । जब आधे बङ्गाल की अधीश्वरी रानी भवानी को राजा साहब की इस कालिमा का पता चला, तो उसने इशारे से उपदेश देने को उनके पास चूड़ी और सिन्दूर का उपहार भेजा, किन्तु स्वार्थ के रंग में राजा बहादुर को उस अपमान का कुछ ख्याल न हुआ। नवाब का ख्याल था कि फ्रांसीसियों से जब ये सब और अंगरेज़ चिढ़ रहे हैं, तो उन्हें हटा देने से सब सन्तुष्ट हो जायेंगे, परन्तु जब नवाब ने सुना कि फ्रांसीसियों को ध्वंस करने को अंगरेज़ी पल्टन जा रही हैं, तो नवाब ने क्रोध में आकर वाट्सन साहब से कहला भेजा-“या तो इसी समय फ्रांसीसियों को पीछा न करने का मुचलका लिख दो, वरना इसी समय राजधानी त्यागकर चले जाओ।" यह खबर तत्काल साहब को लगी। उसने फ़ौरन व्यापारी नौकाएँ सजवाई। उनमें भीतर गोला-बारूद था, और ऊपर चावल के बोरे । उनके ऊपर भी ४० सुशिक्षित सैनिक थे। इस प्रकार ७ नावों को लेकर क्लाइव .
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