२७२ कलकत्त रवाना हुआ। साथ ही क़ासिमबाजार के खजाने को कलकत्त भेजने का गुप्त आदेश भी कर दिया गया। इसके बाद वाट्सन ने नवाब को अन्तिम पत्र लिखा- “एक भी फ्रांसीसी के जिन्दा रहते अंगरेज शान्त न होंगे। हम क़ासिमबाजार को फ़ौज भेजते हैं, और शीघ्र ही फ्रांसीसियों को बाँध लाने को पटने फ़ौज भेजी जायगी। इन सब कामों में आपको अँगरेज़ों की सहा- यता करनी पड़ेगी।" यारलतीफ़खाँ, पहले जगतसेठ के यहाँ रोटियों पर नौकर था । समय पाकर वह सिराजुद्दौला की सेवा में २००० सवारों का अधिपति हो गया। मीरज़ाफर की नमकहरामी का सन्देश सर्व-प्रथम उसी के द्वारा अंगरेज़ों के पास पहुँचा। दूसरे दिन एक अरमानी सौदाग़र ख्वाजा विदू ने, जो पहले पालता-बन्दर पर भी अँगरेज़ों की जासूसी करता था-खबर दी कि मीर- जाफ़र इस शर्त पर आपकी मदद को तैयार है कि आप उसे नवाब बनाइये और पीछे वह आपकी इच्छानुसार कार्य करने को तैयार है। जगतसेठ आदि सब सरदार आपके पक्ष में होंगे। यह भी सलाह हुई कि इस समय क्लाइव को लौट जाना चाहिये । नवाब शीघ्र ही पटना की तरफ दुर्रानी की फ़ौज से लड़ने को कूच करेगा । तब राजधानी पर हमला करना उत्तम होगा। क्लाइव तत्काल लौट गया, और नवाब को अंगरेजों ने लिखा- "हम तो सेना लौटा लाये । अब आपने पलासी में क्यों छावनी डाल रखी है ?" जो दूत इस पत्र को लेकर गया था, वह वाट्सन साहब के लिये यह चिट्ठी भी लेगया-“मीरजाफर से कहना, घबराये नहीं, मैं ऐसे ५ हजार सिपाहियों को लेकर उसके पक्ष में आ मिलू गा, जिन्होंने युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाई।" परन्तु अहमदशाह अब्दाली भारत से लौट गया, इसलिये नवाब को पटने जाना ही नहीं पड़ा। इसके सिवा उसने अंगरेजों की जाली नौकाएँ रोकलीं, और पलासी में ज्यों-की-त्यों छावनी डाले रहा। अंगरेघों के पीछे गुप्तचर छोड़ दिये गये । फ्रान्सीसियों को भागलपुर ठहरने को कहला भेजा, और मीर जाफर को १५ हजार सेना लेकर पलासी में रहने का हुक्म दिया।
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