पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२८८

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२७६ भाग रही है। आप भागकर प्राण बचाइये। नवाब का प्रारब्ध टूट चुका था। सभी हरामी, शत्रु और दगाबाज़ थे। उसने देखा-मेरे पक्ष के आदमी बहुत ही कम हैं । राजवल्लभ ने उसे राजधानी की रक्षा करने की सलाह दी। अतः नवाब ने २००० सवारों के साथ हाथी पर सवार हो, रक्ष-क्षेत्र त्यागा। तीसरे पहर तक मोहनलाल और फ्रेंच सिनफ लड़े। परन्तु विश्वासघातियों से खीझकर अन्त में उन्होंने भी रण-भूमि छोड़ी। नवाब के सूने खोमे पर विजयी क्लाइव और उसके गधे ने अधिकार कर लिया। जिस सेना ने इस महायुद्ध में ऐसी वीर-विजय पाई थी-उसके झण्डे पर सम्मानार्थ 'पलासी' लिख दिया गया है और उस बाग़ के आम की लकड़ी का एक सन्दूक बनाकर किसी साहब बहादुर ने महारानी विक्टोरिया को भेंट किया था। आज भी उस स्थान पर एक जय-स्तम्भ खड़ा; अंगरेज़ों की वीरता की कहानी कह रहा है ! राजधानी में नवाब के पहुँचने से पहले ही नवाब के हारने की खबर सर्वत्र फैल गई। चारों ओर भाग-दौड़ मच गई। अंगरेज़ों की लूट के डर से लोग इधर-उधर भागने लगे। नवाब ने सरदारों को बुलाकर दरबार करना चाहा। मगर औरतें तथा स्वयं उसके श्वसुर मुहम्मद रहीमखाँ ही उधर ध्यान न दे, भाग खड़े हुए। देखा-देखी सभी भाग गये । अब सिराज ने स्वयं सैन्य-संग्रह के लिये गुप्त खजाना खोला। सुबह से शाम तक और शाम से रात-भर सिपाहियों को प्रसन्न करने को खूब इनाम बाँटा गया। शरीर-रक्षक सिपाहियों ने खुला खजाना पाकर खूब गहरा हाथ मारा, और यह धर्म-प्रतिज्ञा करके कि प्राण-पण से सिंहासन की रक्षा करेंगे-एक-एक ने भागना शुरू किया। धीरे-धीरे खास महल के सिपाही भी भागने लगे। एकाएक रात्रि के सन्नाटे में मीरजाफ़र को विक- राल तोपों का गर्जन सुन प्रड़ा। अभागा सज्जन और एय्याश नवाब अन्त में गौरवान्वित सिंहासन को छोड़कर अकेला चला। पीछे-पीछे पुराना द्वारपाल और प्यारी बेगम लुत्फुिन्निसा छाया की तरह हो लिये। प्रातः मीरजाफ़र ने शीघ्र ही सूने राजमन्दिर में अधिकार जमाकर नवाब की खोज में सिपाही दौड़ाये। नवाब की सब हितू-बन्धु-स्त्रियाँ कैद