पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/२८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२७८ - नवाब को इस वीर पर बहुत भरोसा था। इसकी मृत्यु से नवाब मर्माहत हुआ। उसने मीरजाफ़र को बुलाया। वह दल बाँधकर सावधानी से नवाब के डेरे में घुसा। उसके सामने आते ही नवाब ने अपना मुकुट उसके सामने रखकर कहा-"मीरजाफ़र ? जो होगया, सो होगया । अली- वर्दी के इस मुकुट को तुम सच्चे मुसलमान की तरह बचाओ।" उसने यथोचित रीति से सम्मानपूर्वक मुकुट को अभिवादन करते हुए, छाती पर हाथ मारकर बड़े विश्वास से साथ कहा- "अवश्य ही शत्रु पर विजय प्राप्त करूगा। पर अब शाम हो गई है, ओर फौजें थक गई हैं। सवेरे मैं क़यामत वर्षा कर दूंगा।"-नवाब ने कहा, "अँगरेजी फौज रात को आक्रमण करके क्या सर्वनाश न कर देगी?" उसने गर्व से कहा-"फिर हम किसलिये हैं ?" नवाब का भाग्य फूट गया। उसे मति-भ्रम हुआ। उसने फौजों को पड़ाव से लौटने की आज्ञा दे दी। तब महाराज मोहनलाल वीरतापूर्वक धावा कर रहे थे। उन्होंने सम्मानपूर्वक कहला भेजा-“बस; अब दो ही- चार घड़ी में लड़ाई का खातमा होता है। यह समय लौटने का नहीं है। एक क़दम पीछे हटते ही सेना का छत्र-भंग हो जायगा। मैं लौटू गा नहीं लडूंगा।" मोहनलाल का यह जवाब सुन, क्लाइव का गधा थर्रा गया। उसने नवाब को पट्टी पढ़ाकर फिर आज्ञा भिजवाई। बेचारा मोहनलाल, साधा- रण सरदार था-क्या करता? क्रोध से लाल होकर कतारें बाँध, वह पड़ाव को लौट आया। गधे की इच्छा पूरी हुई। उसने क्लाइव को लिखा- "मीरमदन मर गया। अब छिपने का कोई काम नहीं। इच्छा हो, तो इसी समय, वरना रात के तीन बजे आक्रमण करो-सारा काम बन जायगा।" बस, मोहनलाल को पीछे फिरता देख, और गधे का इशारा पा, क्लाइव ने स्वयं फौज़ की कमान ली, और बाग़ से बाहर निकल, धीरे- धीरे आगे बढ़ने लगा। यह रंग-ढंग देख बहुत-से नवाबी सिपाही भागने लगे पर मोहनलाल और सिनफ फिर घूमकर खड़े हो गये । इधर बेईमान दुर्लभराय ने नवाब को खबर दी कि आपकी फौज़