२८८ और सूरत से लेकर नर्मदा तक फैला हुआ प्रान्त दिया गया। इसकी राज- धानी दौलताबाद थी दूसरे को बीजापुर का प्रान्त दिया गया था, और तीसरे को गोलकुण्डा का। ये तीनों गुलाम बहुत शीघ्र धन-शक्ति-सम्पन्न हो गये। और चूकि वे शिया थे, इसलिये ईरानियों से उन्हें बहुत-कम सुभीते मिलते गये। पीछे इन तीनों ने मिलकर विजयनगर के प्रति विद्रोह किया, और तालीकोट के मैदान में विजयनगर का गौरव सदा के लिये. धूल में मिला दिया। इसके बाद इन तीनों में परस्पर फूट फैल गयी, ओर १६ वीं सदी के अन्त में अहमदनगर के बादशाह ने बराड पर आक्रमण कर अपने राज्य में मिला लिया। पीछे, जब दिल्ली पर अकबर का राज्य जम गया, तो उसने अपने पुत्र मुरार को अहमदनगर पर आक्रमण करने भेजा । उस समय चाँद- बीबी अहमदनगर की सुलताना थी। उसने बड़ी वीरता से युद्ध किया। अन्त में परस्पर की फूट से वह मारी गई और मुग़लों का अहमदनगर पर अधिकार होगया। कुछ दिन बाद खामदेश भी मुग़लों के हाथ आ गया। परन्तु मलिक अम्बर नामक एक वीर ने किरकी में एक नई राजधानी बना ली थी, और मुग़ल-सेना को तीन बार परास्त किया था। अब जहाँगीर ने उस पर शाहज़ादा खुर्रम को भेजा, जिसने मलिक अम्बर को मार भगाया। इसके बाद शाहजहाँ के काल में दक्षिण के सूबेदार खानजहाँ ने मलिक अम्बर के बेटों से मिलकर विद्रोह का झगड़ा खड़ा किया। अन्त में ५ वर्ष युद्ध करके फिर शाही अमल में अहमदनगर आगया। इस मुहिम में बीजापुर ने अहमदनगर की सहायता की थी इसलिये इस पर भी आक्रमण किया गया, पर इस अवसर पर बीजापुर से सन्धि हो गई, और बीजापुर राज्य दिल्ली के बादशाह को कर देने लगा। औरंगजेब ने, जब वह दक्षिण का सूबेदार था, तब एक बार मीर जुमला के साथ गोलकुण्डा पर चढ़ाई की थी, पर सन्धि होगई थी। तब से गोलकुण्डा की शक्ति ढीली पड़ी थी और वह औरंगज़ब के लगभग बिल- कुल आधीन हो गया था। बीजापुर के विरुद्ध बराबर मुग़ल-सेना; समय- समय पर जाती रही। उधर दक्षिण में शिवाजी ने एक शक्तिशाली राज्य
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