स्तूपों और मूर्तियों को छोड़ कर जो सिकन्दर के बड़े भोज की रात्रि से अब तक उजाड़ पड़ा था, अपने प्राण बचाने को बसरे के रेगिस्तानों में भाग गया। अन्त में अक्सस नदी के किनारे वह पकड़ कर मार डाला गया। उस नदी के पार का देश भी अधीन कर लिया गया और उस देश से कर-स्वरूप वार्षिक दो लाख अशर्फ़ियाँ बहुत दिनों तक मिलती रहीं। चीन के सम्राट ने मुसलमानों से मित्रता को और फल-स्वरूप सिन्ध नदी के किनारे तक इस्लामी झण्डा फहराने लगा।
जिन सेनापतियों ने सीरिया विजय में नाम पाया था, उनमें अमर, इब्ने आरु नाम का एक जनरल था, जिसके भाग्य में मिस्र का विजेता होना लिखा था। वह पूर्व की विजयों से सन्तुष्ट न होकर पश्चिम को मुड़ा। उसके साथ पाँच हजार सवारों का जत्था था। उसकी दृष्टि अफ्रीका महाद्वीप पर थी। मिस्र उसका द्वार था। उसने मिस्र में पहुँचते ही वहाँ के ईसाइयों ने कहलाया कि हम यूनानियों के साथ इस लोक तथा परलोक का कोई सम्बन्ध रखना नहीं चाहते और सदैव के लिए रोम के अत्याचारी और उसको कैल्सीडोन की सेवा को सौगन्ध खाकर त्यागते हैं। उन्होंने ख़लीफ़ा को सड़कें और पुल बनवाने के लिए तथा सेना की रसद और ख़बरें पहुँचाने के लिये शीघ्र ही कर देना स्वीकार कर लिया।
मोम्फ़िस नगर, जो प्राचीन फ़रऊन के समय में राजनगरों में था, विश्वासघातियों की सहायता से शीघ्र जीत लिया गया, और सिकन्दरिया भी घेर लिया गया। बहुत से आक्रमण और धावे हुए। अन्त में २२ हज़ार सैनिकों के कट जाने पर चौदह महीने के घेरे के बाद उस नगर का पतन हुआ। अमरू ने ख़लीफ़ा को इस बड़े नगर के विषय में लिखा था---"इसमें चार हजार महल, पाँच हज़ार स्नानागार, चार सौ नाट्यशालाएँ, बारह हजार दुकानें केवल तरकारियों-भाजियों की और चालीस हज़ार यहूदी साहूकार राज्य कर देने वाले हैं।"
हरक्यूलस ने अपने कुस्तुन्तुनिया के राजमहल में यह दुखदायक ख़बर सुनी तो इतना मर्माहत हुआ कि सिकन्दरिया के पतन के एक मास बाद ही मर गया।
इसी सिकन्दरिया में वह जगत्विख्यात पुस्तकालय था जिसमें पृथ्वी- भर के विद्वानों की हस्तलिखित दस लाख पुस्तकें थीं। जब उमर ने ख़लीफ़ा