से पूछा कि इन पुस्तकों का क्या किया जाय, तब ख़लीफ़ा ने लिखा कि यदि उनका विषय कुरान के अनुकूल न हो तो उन्हें रखने की कोई आवश्यकता नहीं। अतएव उन्हें नष्ट कर दिया जाय। अमरू ने उन्हें ईंधन के तौर पर जलाने के लिये हम्मामों में बाँट दिया और उनसे छः मास तक पाँच हज़ार हम्माम गर्म होते रहे।
मिस्र देश रोम-राज्य का अन्न-भण्डार था, इसी कारण इसे लौटा लेने की बड़ी-बड़ी कोशिशें की गईं। अमरू को दो बार फिर चढ़ाई करनी पड़ी। उसने जान लिया कि समुद्र की ओर से खुला रहने से उस पर बड़ी सुगमता से आक्रमण किये जा सकते हैं। उसने कहा-"ख़लीफ़ा की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि यदि तीसरी बार आक्रमण किया जाय तो मैं सिकन्दरिया को ऐसा बना दूँगा कि वह प्रत्येक मनुष्य के लिये वेश्या के घर के समान हो जायेगी।" उसने अपने कथन से बढ़कर काम कर दिखाया और शहरपनाह ढहवा दी। इससे यह नगर बिलकुल उजाड़ हो गया।
वह बीस वर्ष बाद अक़वानील नदी से एटलाण्टिक समुद्र तक बढ़ आया और अपने घोड़े को सागर-जल में हिलाकर ज़ोर से कहा कि-"हे सर्वोपरि ईश्वर, यदि यह समुद्र मेरा रास्ता न रोकता तो मैं पश्चिम के अज्ञात राज्यों में चला जाता और तेरे पवित्र नाम तथा अद्वैतता का उपदेश देता, और उन विद्रोही जातियों को, जो तेरे सिवा अन्य देवताओं को पूजती हैं, तलवार के हवाले करता।"
अब साद के पास ९० हजार सवार थे। वह उन्हें लेकर मदाइन राजधानी की ओर बढ़ा। बादशाह मज्दगुर्द घबरा गया। सरदारों में फूट पड़ गई। वह अपने रत्न और परिवार सहित वहाँ से भागकर हल्दान पहुँचा। राजधानी में मुसलमान घुस पड़े और उसे लूट-खसोट कर तहस-नहस कर डाला।
जलूला नगर में फिर बादशाह की सेना से मुठभेड़ हुई। यह लड़ाई छ: मास चली। अन्त में जलूला और हल्दान मुसलमानों के हाथ में आ गये और बादशाह रै नगर को भाग गया।
इस बीच में साद से नाराज़ होकर ख़लीफ़ा ने उसे पदच्युत कर दिया और उसका घर फूँक दिया। इस बीच में अवकाश पाकर ईरान के बादशाह ने डेढ़ लाख सेना फिर एकत्रित की। उधर नेमान की अधीनता में एक