२५ निजाम - दिल्ली के बादशाह मुहम्मदशाह के वज़ीर आसफजाह ने वज़ारत से इस्तीफ़ा देकर दक्षिण में जा, हैदराबाद को अपनी राजधानी बनाकर एक नया राज्य स्थापित किया, और १० वर्ष तक मराठों से लड़कर अपने राज्य को दृढ़ कर लिया । धीरे-धीरे दक्षिण में तीन शक्तियाँ प्रबल होगई । एक निज़ाम, दूसरी पेशवा और तीसरी हैदरअली। अंगरेज़ी-शक्ति ने इन तीनों को न मिलने देने में ही कुशल समझी। पाठक, हैदरअली के विवरण में पढ़ चुके हैं कि किस भाँति निजाम ने अंग्रेज़ी-शक्ति के आधीन होकर बारम्बार हैदरअली से विश्वासघात किया । ज्यों-ही टीपू की समाप्ति हुई, अंगरेज़ी शक्ति निज़ाम के पीछे लगी। पहले गुण्डर का इलाक़ा उससे ले लिया गया। इसके बाद एक गहरी चाल यह खेली गई कि वज़ीर से लेकर छोटे- छोटे अमीरों तक को रिश्वतें देकर इस बात पर राजी कर लिया गया, कि नवाब की सब सेना, जो फ्रान्सीसियों के आधीन थी, टुकड़े-टुकड़े करके बर्खास्त कर दी जाय, और कम्पनी की सबसीडियरी सेना चुपके-से हैदरा- बाद आकर उसका स्थान ग्रहण कर ले। इसकी नवाब को कानों-कान खबर नहीं हो। वज़ीर यद्यपि सहमत हो गया था, घूस भी खा चुका था, परन्तु ऐसा भयानक काम करते झिझकता था। किन्तु अंगरेजों ने सेना के भीतर ही जाल फैला दिये थे। फलतः निज़ाम की सेनाएँ विद्रोह कर बैठीं; क्योंकि उन्हें कई मास का वेतन नहीं मिला था। ३०४
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