पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०५ इसी मौके पर कम्पनी की सेना ने हैदराबाद को जा घेरा, और वज़ीर से कहा कि फ़ौरन अपनी सेना को बर्खास्त करके कम्पनी की सेना को स्थान दो। पर वजीर ने इनकार कर दिया। अन्त में उसे कम्पनी की इच्छा पूर्ण करनी पड़ी-निजाम ने भी स्वीकृति दे दी, और एक सन्धि द्वारा निज़ाम हैदराबाद की स्वाधीनता का सदा के लिये खात्मा होगया। २६ मुस्लिम-संस्कृति का मारत पर प्रभाव सब से प्रथम-अब हम यहाँ इस बात पर खास तौर से प्रकाश डालना चाहते हैं कि वास्तव में जब मुस्लिम-राज्य स्थापित हो गया-तब, उस शासन में हिन्दुओं के साथ मुसलमानों के कैसे व्यवहार रहे । यह हम बता आये हैं कि बादशाहों में ऐसे कई आदमी हुए-जिन्होंने धर्मान्धता के लिये -निर्दयतापूर्वक -तलवार का सहारा लिया था। पर यदि हम अत्यन्त गहराई से देखें, तो हम समझ जायेंगे कि अन्त में उन्हें हिन्दू जन-बल से झुकना ही पड़ता रहा। यह बात थोड़े-ही विचार करने से समझ में आ सकती है, कि महमूद और तैमूर-जैसा लुटेरा-चाहे जितना भी उत्पात या मारकाट करे, नगरों का विध्वंस करे, और बेतोल-सम्पदा लूटकर ले जाय, परन्तु एक बादशाह के लिये-जिसे सेना, कर तथा अन्य सुव्यव- स्थाओं के लिये हिन्दू-प्रजा से निरन्तर काम लेना पड़ता है-अत्याचार और लूट-मार कितनी घातक है ! सब से मार्के की बात तो यह है, कि मुसलमानी राज्य-काल के मध्य-भाग में जितने युद्ध हुए हैं, उनमें बहुत- ही कम ऐसे मिलेंगे, जिनको विशुद्ध हिन्दू-मुस्लिम युद्ध का रूप दिया जा सके । तराचली के युद्ध में पृथ्वीराज की आधीनता में अफ़ग़ान सैनिकों का एक दल लड़ा था। पानीपत की तीसरी लड़ाई में मुसलमान शासक मर-