३०८ 1 यमुना के पश्चिमोत्तर प्रान्तों में राजपूतों का आधिपत्य था । मध्य-देश कई शक्ति सम्पन्न राजाओं के अधीन विभक्त था, जिनका अधीश्वर कन्नौज- पति था। गंगा के नीचे की घाटियों में पालवंशी बौद्ध राजे थे। उत्तर और दक्षिण भारत के बीच विन्ध्याचल के पश्चिम में मालवा का हिन्दू-राज्य और दक्षिण में चेरा, चौल, पाण्ड्य राज्य फैले हुए थे यद्यपि वे राज्य बिखरे हुए थे, पर विदेशियों के आक्रमण की झोंक के लिये यथेष्ट थे । यदि किसो बड़े मण्डलेश्वर की अधीनता में यह संयुक्त सेनाएँ एकत्र होती थीं, तो वे अचेय समझी जाती थीं। फिर जीता हुआ राज्य विद्रोह का झण्डा खड़ा करता था। यही कारण था कि क़ासिम से मुहम्मद गौरी के गत छः हमलों तक भारत पर मुस्लिम आक्रमणों का वह प्रभाव नहीं पड़ा जो एशिया माइनर के ऊपर पड़ा था। मुहम्मद गौरी का प्रभुत्व भी सफल होना सम्भव न था, यदि परस्पर की कलह और निरन्तर युद्धों से शक्ति का सर्वथा क्षय न हो गया होता । परन्तु यवन- साम्राज्य की नींव तो अकबर के ही काल में प्रौढ़ हुई, जबकि हिन्दू-सर- दारों और हिन्दू-नीति पर राज्य-विस्तार किया । अकबर के समय तक तो प्रबल-से-प्रबल आक्रमण प्रजा के सहने पर भी हिन्दू-शक्तियाँ बराबर उसे चैलेंज देती ही रहीं, और अकबर को मृत्यु के २०० वर्ष बाद ही प्रतापी और अद्भुत मुग़ल साम्राज्य हवा होगया, तथा उसके उत्तराधिकारी को मराठों के हाथ में कैद होना पड़ा। दक्षिण में तालीकोट के मैदान में एक बार हिन्दू-शक्ति गिरी। पर एक सौ वर्ष में ही शिवाजी के रूप में वह फिर उठी, और उसने बड़े बाँकपन से पानीपत के मैदान में ढाई लाख मरहठे ला-खड़े किये । अकबर जैसे प्रतापी शत्रु के सामने भी, प्रताप जैसों ने २५ वर्ष तल- वार चलाई, और औरंगजेब ने अपने शासन के ५० वर्ष चिन्ता और तल- वार की धार पर काटे । यह इस बात का प्रमाण है कि, भारत में कभी भी हिन्दू-शक्ति नष्ट नहीं हुई । पृथ्वी-भर के इतिहास में ११०० वर्ष तक अराजकता में रहकर, अरक्षित जीकर, इतने आक्रमण, क़त्ल और लूट-मार सहकर, तथा ७०० वर्ष विदेशी धर्म-शत्रुओं के शासन में रहकर और किस जाति ने अपने
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