३०७ प्रान्तों तक सीमित रहा। यदि मुसलमान भारत में न आये होते, तो भारतवासी सुखी, समृद्ध और शान्त भारतवर्ष में रहते होते । उनकी कृषि, व्यापार, शिल्प ठीक अवस्था में था। रहन-सहन साधारण और कम खर्चीला था। सम्पत्ति अटूट थी। सामाजिक जीवन में धार्मिक विश्वासों और ब्राह्मणों का अशान्त प्रभुत्व था, परन्तु ईसाइयों और मुसलमानों की अपेक्षा फिर भी उनमें सहनशीलता थी। मुसलमान भी कदापि इतने विजयी न हुए होते, यदि उनमें जहाद का प्रबल जोश और लूट की प्रबल लालसा न होती। पाठक देखते हैं कि योरोप और मध्य-एशिया की भाँति भारत में भी उनका विरोध ढीले हाथों से किया गया था, और समय का प्रभाव था कि मध्य एशिया तो उनके चरणों में लोट गया, और योरोप अछूता बच गया तथा भारत मध्य में ही भ्रष्ट होगया। बिनक़ासिम से बहादुरशाह जफर तक मुसलमानों का लगभग ११०० वर्ष तक काल रहा, और आज उनकी भाषा, सभ्यता, संस्कृति, शिक्षा-नीति और जीवन भारत में एक सिरे से दूसरे सिरे तक व्याप्त है। .७ करोड़ मुसलमान अब भी देश के निवासी हैं, और देश पर उनके वही अधिकार हैं, जो किसी भी देश- वासी के अपनी मातृ-भूमि पर होने चाहिये । इनमें दरिद्र, अमीर, शिक्षित, मूर्ख, रईस, राजा, नवाब सभी तरह के आदमी हैं। यह हम कह चुके हैं कि भारत में आज से पूर्व मुसलमानों की विज- यिनी सेना ने हिन्दुकुश के पश्चिम में समस्त एशिया और अफ्रीका तथा दक्षिणी-योरोप को रौंद डाला था। पंजाब में घुसने से पूर्व वे स्पेन और फ्रान्स को दलित कर चुके थे। कुस्तुनतुनियाँ का प्रताप लूटकर वे साहसी हो गये थे। फिर भी वे इससे पूर्व भारत में घुसने का साहस न कर सके । इसका कारण भारतीय-राजाओं का सैनिक प्रबन्ध था। उन्हें विदेशियों की टक्कर लग चुकी थी, और तातारों और हूणों से वे लोहा ले चुके थे। वे खूब कट्टर योद्धा यौर मुस्तैद सिपाही थे। दुःख था, तो यही कि वे परस्पर संगठित और मित्र न थे, और न वे अच्छे सेनापति व रण-नीति कुशल थे। अपनी शक्तियों को परस्पर दलित करने में लगाये ही रहते थे। इस समय विन्ध्याचल के उत्तर में तीन ज़बर्दस्त राजा बड़ी-बड़ी नदियों की घाटियों में शासन कर रहे थे। सिन्धु-सिंचित मैदानों और -
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