पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३२२

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३१३ - - सुलेमान पर्वत, दक्षिण में समुद्र, पूर्व में गङ्गा। यह आजकल के भूगोल से उत्तर-भारत है। यही आर्यवर्त था। मनु ने भी आर्यवर्त की यही भौगोलिकता लिखी है- आसमुद्रास्तु वै पूर्वांया समुद्रास्तु पश्चिमात् । तयोरेवान्तरं गिर्यो श· वत्तं विहुबुधाः ॥ अमर-कोष में भी ऐसी परिभाषा है- आर्यवतः पुण्यभूमिमध्यं विन्ध्य हिमालयोः । महाभारत में लिखा है कि सहदेव ने पाण्ड्य, द्रविड़, उडू, केरल, आन्ध्र आदि देशों को विजय किया था। भीष्म-पर्व में दो सौ नदियों की सूची दी हुई है। उनमें दक्षिण की प्रायः सभी नदियों का ज़िक्र है । वन-पर्व में जिन वनों का वर्णन है, उनमें दक्षिण के प्रायः सभी वनों का ज़िक्र आ गया है, जिनमें अगस्त्य, वरुण, ताम्रवर्णी, कावेरी और कन्या-तीर्थों का वर्णन है । यह कन्या-तीर्थ अवश्य कन्या-कुमारी होगा। भीष्म-पर्व में एक और महत्वपूर्ण बात लिखी है। वहाँ देश का आकार सम-त्रिकोण-सदृश लिखा है। यह सम-त्रिकोण चार छोटे-छोटे सम-त्रिकोणों में विभक्त किया है। इस सम-त्रिकोण की शिखा कन्या-कुमारी से और आधार हिमालय पर्वत माना है। कनिंघम साहब लिखते हैं कि यदि पश्चिमोत्तर दिशा में भारत का विस्तार ग़ज़नी तक माना जाय, और इस त्रिकोण का एक बिन्दु कन्या कुमारी और दूसरा आसाम समझा जाय तो भीष्म-पर्व का भारत का त्रिकोण बन जाय । पुराणों में वर्णित नवखण्ड और वृहत् संहिता में बाराह मिहिर के लिखे हुए देश के और नौ विभागों से भी प्रतीत होता है कि अत्यन्त प्राचीन- काल में देश का सम्पूर्ण ज्ञान मनुष्यों को था । कालिदास ने मेघदूत में राम- गिरि से अल्कापुरी तक अत्यन्त सुन्दर भौगोलिक वर्णन किया है। धीरे-धीरे आर्यवर्त में दक्षिणापथ भी पौराणिक काल में शामिल हो गया। देखिए- गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ! 20 नर्मदे सिन्धु कावेरी जलेस्मिन सन्निधं कुरु ।