३१६ के साक्षी हैं । चीन, लंका और यूनान तक के यात्री इन्हें देखने भारतवर्ष में आते थे। कात्यायन ने चोल, पाण्ड्य और महिष्मती नामक दक्षिणी राज्यों का वर्णन किया है । ऐतिहासिक विद्वानों का मत है, कि कात्यायन नन्द- वंशीय राजाओं के समय में हुए हैं जिनका काल ईसा से ४००० वर्ष पूर्व अनुमान किया जाता है । यूनानियों के प्रसिद्ध विजयी एलग्जण्डर ने भारत के भौगोलिक विद्वानों से देश का नक़शा तैयार कराया था, और देश का वर्णन लिखवाया था। वह लेख-एलेग्जैण्डर की मृत्यु पर सिल्यूकस के समय में पैट्रोक्लिस के हाथ पड़ा, और स्ट्रावों ने उसी के आधार पर देशों की माप की थी। आर्य चाणक्य ने अपने प्रख्यात अर्थशास्त्र में उत्तरापथ और दक्षिणा- पथ का विवरण दिया है। उससे उस समय के भारत की आर्थिक दशा, कला- कौशल और व्यापार का पता लगाता है। अशोक के शिला-लेखों में भी चोल, पाण्ड्य, केरल, आन्ध्र आदि राज्यों का उल्लेख है। राजकुमार महेन्द्र का लंका जाना और कुछ बौद्ध यात्रियों का चीन और मिस्र जाना भी इसका प्रमाण है । पातञ्जलि के महाभाष्य में वैदर्भ, काजीपुर, केरल या मालाबार का जिक्र है ! यह हुई भौगोलिक और धार्मिक दृष्टि से एकता की बात । अब राजनैतिक दृष्टि से इस बात को देखिए। यह बात कहने की ज़रूरत नहीं है कि राजनैतिक एकता का कितना महत्व भौगोलिक एकदेशीयता पर पड़ता है; क्योंकि उदहारण के लिये अंगरेजी साम्राज्य का भारत में विस्तार का परिणाम सम्मुख है। प्राचीनकाल में भी ऐसे बड़े-बड़े साम्राज्य कायम किये गये थे। ईसवी सन् से पूर्व अशोक का राज्य अफ़गानिस्तान से मैसोर तक फैला हुआ था । चौथी शताब्दी में समुद्रगुप्त और उससे प्रथम चन्द्र- गुप्त का राज्य-विस्तार भी समस्त भारत को एकता के सूत्र था। इसके बाद सातवीं शताब्दी में हर्षवर्धन, ग्यारहवीं में पृथ्वीराज और १६ वीं में अकबर और औरङ्गजेब ऐसे ही सम्राट हुए हैं। वैदिक साहित्य में भी सम्राट, अधिराज, राजधिराज आदि नाम देखने को मिलते हैं। शुक्र-नीति में सामन्त, माण्डलिक, राजा, महाराजा, सम्राट, विराट और में बाँधे हुए
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