पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३३०

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३२१ ऐसा समय था, जब भारत में इस्लाम का प्रवेश हुआ । यह हम बता चुके हैं कि अरब से योरप का सम्बन्ध इस्लाम के जन्म से पूर्व का है, और इस्लाम-धर्म के जन्म के बाद भी वह सम्बन्ध वैसा ही बना रहा-हम यह भी कह चुके हैं। उस समय बिना ही बल-प्रयोग इस्लाम के साधुओं ने लाखों हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया था। पाठक अब यह भली-भाँति समझ गये होंगे कि इतनी आसानी से मुसलमान साधुओं ने जो हिन्दुओं को मुसलमान बना लिया इसके दो प्रधान कारण थे-एक यह कि उस समय भारत की सामाजिक और धार्मिक स्थिति अत्यन्त छिन्न-भिन्न और कमज़ोर थी; अपढ़ और दलित लोगों के लिये स्थान ही न था। दूसरे- इस्लाम के साधुओं के रहन-सहन और विचारों पर बौद्धों और हिन्दू-दार्श- निकों का प्रभाव पड़ा था, और वे तत्कालीन हिन्दू-दलितों के लिये अति अनुकूल और प्रिय थे। यही कारण था कि समस्त भारत में इस्लाम का प्रचार बेरोक फैल गया था, और लाखों मनुष्य मुसलमान हो गये थे, जिनमें अधिक संख्या उन छोटी जातिवालों की थी-जो, वर्ण-व्यवस्था और जात-पाँत से कारण अत्यन्त तिरस्कृत थे। हम बता चुके हैं कि ब्राह्मणों के अधिकार और शक्तियाँ बेतोल थीं। भारत को सम्पत्ति मन्दिरों में झुकी पड़ी थी, और वे जिस भाँति अछूतों से घृणा करते थे, उसी भाँति नव-मुसलिमों से भी। इन घमण्डी ब्राह्मणों और उच्च जाति के हिन्दुओं पर तब क़हर पड़ा-जब इस्लाम नंगी तल- वार लेकर बल-पूर्वक भारत में घुसा । मन्दिर तोड़े गये, मूर्तियाँ भ्रष्ट की गई, खज़ाने लूट लिये गये, और लाखों कुलीन ब्राह्मण दास बनाकर ग़ज़नी में ले जाकर बेच दिये गये। इस प्रकार १३वीं शताब्दी के अन्त से १६वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक भारत में तलवार का राज्य रहा । परन्तु ज्यों ही इस्लाम के साम्राज्य स्थापित हो गये, बादशाहों ने दिल्ली और आग़रे में राजधानियाँ बनाई। तब समाज में एक भीतरी क्रान्ति प्रारम्भ हुई। भारत के शिल्प, वाणिज्य, कला-कौशल, चित्रकला विज्ञान, वस्तु-शास्त्र आदि पर इस्लाम के इन अनुयायियों की गहरी छाप पड़ी। सिन्ध पर ८वीं शताब्बी में मुहम्मद-बिन-कक़ासिम ने आक्रमण