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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३३३

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३२४ उन्नति हुई, वह असाधारण थी राजपूताना और अन्य हिन्दू-राजदरबारों में बादशाहों की अभिरुचि की नक़ल की जाती थी। हम इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि भारतीय संस्कृति पर मुसलमानों का नैतिक प्रभाव क्या पड़ा? सभ्राट हर्षवर्धन के बाद ७ वीं शताब्दी से १६ वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक लगभग ६०० वर्ष के समय में भारत में कोई प्रधान शक्ति नहीं थी। समस्त देश छोटे-छोटे टुकड़ों में छिन्न-भिन्न था। यह हम पीछे कहीं कह भी आये हैं, वह समय भारत की अतिशय राजनैतिक दुर्वलता का था। इसी कमी को मुग़लों ने १६ वीं सदी में सम्पूर्ण किया, और १८ वीं शताब्दी तक एक महान् साम्राज्य कायम कर दिया। यह मुग़ल-साम्राज्य रानीतिक, सामाजिक व्यवस्था, उद्योग-धन्धे, कला-कौशल, समृद्धि, शिक्षा, और शासन-सभी दृष्टि से गौरवान्वित था। मुगल साम्राज्य से प्रथम सम्राट अशोक और समुद्रगुप्त के राज्य-विस्तार भी असाधारण रहे। पर मुग़ल साम्राज्य में इनसे यह विशेषता रही, कि देश में एकछत्रता उत्पन्न होगई। प्रो० जदुनाथ सरकार लिखते हैं- ...... अकबर के सिंहासन पर बैठने के समय से मुहम्मदशाह की मृत्यु तक (१५५६-१७४६) मुग़ल-शासन के २०० वर्षों में समस्त उत्तरीय भारत और अधिकांश दक्षिण को भी एक सरकारी भाषा, एक शासन-पद्धति, एक-समानसिक्के, और हिन्दू-पुरोहितों और ग्रामीणों को छोड़कर जन- साधारण को एक भाषा प्रदान की। जिन प्रान्तों पर मुग़ल-दर्बार का दूर का प्रभाव था-अर्थात् जो मुग़ल दरबार से नियुक्त सूबेदार के आधीन -चाहे वह हिन्दू राज्य हो या मुस्लिम,-कम-अधिक मुग़लों को शासन प्रणाली, सरकारी परिभाषाओं, दर्बारी शिष्टाचार, और उनके सिक्कों का अनुकरण करते थे।" एक विद्वान ने लिखा है- "मुग़ल-साम्राज्य के अन्तर्गत २० सूबे थे, जिन पर एक-ही प्रणाली से शासन किया जाता था, और विबिध सरकारी ओहदों के नाम तथा उपाधियाँ सब एक-समान थीं। तमाम सरकारी मिसलों, फ़रमानों, सनदों, माफ़ियों, राहदारी के परवानों, पत्रों और रसीदों में एक फ़ारसी भाषा का - था- 24