पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४५ बड़ी बारीकी से यह सब देखा और तत्काल उन्होंने एक नई योजना को जन्म दिया उनमें एक यह थी कि भारत में द्विराष्ट्र का सिद्धान्त स्थापित हो जाय । मताधिकार में, सरकारी नौकरियों में, और अन्य विषयों में भी अब सरकार बात-बात में हिन्दू और मुस्लिम का पक्ष लगाने लगी। बंगालियों की एकता को भंग करने के लिये बंगाल के भी दो टुकड़े कर दिये गये । मुस्लिम-बहु बंगाल को हिन्दु-बहु बंगाल से पृथक् कर दिया गया, परन्तु यह कार्य समय से पूर्व हुआ । इस समय तक हिन्दू और मुस्लिम द्विराष्ट्र भावना अच्छी तरह पकने पाई थी। सभी लोग अपने को बंगाली समझते थे, और सब ने मिलकर बंगभंग का विरोध किया। बंगाल को उस समय एक कर दिया गया, परन्तु अंगरेजी राजनीति का यह द्विराष्ट्रवाद प्रधान यन्त्र बन गया और छोटी नौकरी से लेकर बड़े से बड़े महत्वपूर्ण-कार्यों के लिये हिन्दू-मुस्लिम का प्रश्न आम विवाद का प्रश्न बन गया, जिसे अंगरेज बड़े चाव से देखते रहे, क्योंकि उनके जीवन का वही एक सहारा था। इसी समय प्रथम योरोप का युद्ध हुआ और उसमें पहली बार एशि- याई जनों ने निर्भय होकर योरोपियन जातियों के साथ युद्ध किया । योरो- पियन जनों को विपन्नावस्था में भागते हुए देखा। इस युद्ध की समाप्ति एशिया में साहस और आशा का प्रकाश लेकर आई। विज्ञान ने भी युग- परिवर्तन में सहायताएँ दीं। साम्राज्यवाद की रूप रेखायें बदलने लगीं और अब उसका आधार सेनायें और युद्ध न रह गये । बल्कि अर्थ -साम्राज्य का एक नया रूप उस समय प्रकट हुआ जबकि योरोप की सब शकितयों ने जीवन रक्षा केवल अपने आर्थिक बल के आधार पर की। परन्तु इसी समय रूस का श्रमवाद उसके सम्मुख आकर खड़ा हो गया। यह श्रम और पूंजी का संघर्ष शीघ्र ही सारे विश्व में ऐसा फैला कि इसने सहस्राब्दी के जमे हुए साम्राज्यवाद की भावनाओं को छिन्न-भिन्न कर डाला । दूसरा विश्व-युद्ध होना था और हुआ। और उसमें रक्त की शुद्धता का दम्भ और राष्ट्रीयता का दम्भ जलकर खाक हो गया। और उसके साथ ही योरोप के प्रभुत्व का सूर्य भी। परन्तु अब भारत न केवल एशिया भर के लिये प्रत्युत सम्पूर्ण विश्व के लिये एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया था। योरोप की कोई शक्ति अब 1 -