पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/३९

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२–अब्दुल रहमान। मूर्ख और कानों का कच्चा है, जुआरी भी है । वह तेरा कुछ न बिगाड़ सकेगा।

४-अब्दुल्ला इब्ने जवीर। धूर्त और वीर है। मुकाबिले आवे तो वीरता पूर्वक लड़ना। मेल चाहे तो सन्धि कर लेना और अधिकार में लाकर क़त्ल करवा देना।

गद्दी पर बैठते ही उसने मदीने के हाकिम वलीद को लिख भेजा कि हुसेन इब्ने अली और अब्दुल्ला इब्ने ज़वीर से हलफ़नामा लेकर भेजो। वजीद ने उन दोनों को बुलाकर क़त्ल करने की सलाह की, पर वे दोनों सचेत हो गये और मदीने से भाग गये और यजीद के विरुद्ध विद्रोह खड़ा कर दिया। कोफे के लोगों ने उन्हें सहायता देने का वचन दिया और डेढ़ लाख के लगभग मनुष्य हुसेन के साथ हो गये।

यह समाचार सुन यज़ीद ने बसरे के हाकिम को लिखा कि कोफा पहुँच कर वहाँ के हाकिम नेमान को निकाल दो और कोफा पर अधिकार कर लो। बसरे का हाकिम अब्दुल्ला बड़ा चालाक था। वह अकेला बीस आदमी लेकर कोफे पहुँचा। कोफे वाले उसे हुसेन समझे और किले में ले गये जहाँ पहुँचते ही उसने वहाँ के हाकिम का सिर काट लिया। यह देख जो सेना हुसेन के पक्ष में इकट्ठी हुई थी भाग खड़ी हुई। हुसेन को यह भेद मालूम न था। वह कोफे में तैयारियों की ख़बर पाकर अपने बाल-बच्चों सहित कोफे को चल दिया था। सीमा प्रान्त पर सरदार हुर कुछ सवारों के साथ सामने आया, हुसेन समझा स्वागत को आया है। पर उसने कहा कि मुझे कोफा के हाकिम अब्दुल्ला ने भेजा है कि मैं आपको अपने साथ कोफा ले चलूँ। हुसेन ने उसे मिलाने की कोशिश की पर वह नहीं माना।

इसके बाद इसका बेटा अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा हुआ। इसकी आयु चालीस साल की थी। अब्दुल्ला अब भी मक्का और मदीने में ख़लीफ़ा माना जाता था। इसलिए इसने वैतुल मुकद्दस पैलेसटाइन को हज की जगह नियत किया। उधर लोगों ने अली के क़त्ल का बदला लेने की तैयारी की। मुन्तकिम उनका ख़लीफ़ा बना और उसने पचास हजार आदमियों को क़त्ल किया। अब्दुल मलिक ने उसके सामने बड़ी भारी सेना भेजी। और वह युद्ध में बासठ वर्ष की आयु में मारा गया। इसके बाद मसअब हाकिम बना और