पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५
 

चिल्लाया पर उसे बुर्ज से नीचे फेंक दिया गया। इसके बाद सब स्त्री-पुरुषों को बुलाकर एक खाई में खड़ा किया गया। उनके बीच में जूलियन की स्त्री भी थी। सबसे कलमा पढ़ने को कहा गया, लेकिन इन्कार करने पर खाई में मिट्टी डालकर सबको जिन्दा ज़मींदोज़ करा दिया। उधर एक दल सेनापति अब्दुल रहमान की अध्यक्षता में फ्रांस पर टूट पड़ा और उसे कुचल डाला। वह लायर नदी तक पहुँच गया। तमाम गिरजों और शहरों को लूट लिया गया। चमत्कारी पादरियों की कुछ भी न चली।

अन्त में सन् ७३२ में चार्ल्स मारहेल ने इस आक्रमण से टक्कर ली। रात-दिन की कड़ी लड़ाई के बाद अब्दुल रहमान मारा गया और मुसलमान पीछे लौट आए। इस लड़ाई के विषय में इतिहासकार मि० गिवन कहते हैं कि जिबरालटर पहाड़ी से लायर नदी के किनारे तक अर्थात् एक हज़ार मील से अधिक दूर तक मुसलमानों को विजयी सेना बढ़ती चली गई थी और यदि इतनी ही दूर वे और आगे बढ़ जाते तो पोलैण्ड और स्काटलैण्ड के पहाड़ों तक पहुँच जाते।

अब इटली की बारी आई। सन् ८४६ में रोम का जो अपमान धर्मान्ध मुसलमानों ने किया था वह बड़ा ही नीच भाव से किया था। एक छोटी सी मुसलमानी सेना टाईगर नदी पार करके नगर के कोट के सामने आ डटी। यह फाटक तोड़ कर नगर में जाने योग्य शक्तिशाली न थी। सेण्ट पीटर और सेण्टपोल के समाथिस्थलों को इसने विध्वंस करके लूट लिया। सेण्ट पीटर के गिरजा की चाँदी की वेदिका तोड़कर उसकी चाँदी अफ्रीका भेज दी गई। यह पीटर की वेदी रोमन ईसाइयों के धर्म का मुख्य चिह्न थी।

इस प्रकार रोम नगर का सर्वाधिक अपमान हुआ। एशिया माईनर के गिरजे मिट चुके थे। बिना आज्ञा लिये कोई ईसाई जेरूसलम नगर में पैर नहीं रख सकता था और सुलेमान के मन्दिर के सम्मुख ख़लीफ़ा उमर की मस्जिद खड़ी थी। सिकन्दरिया नगर के भग्नावशिष्ट भाग में से दया की मस्जिद उस स्थान का चिह्न बता रही थी जहाँ भयानक मारकाट के बाद कुछ मनुष्य दया करके छोड़ दिये गये थे। कारपेज नगर में सिवा काले खण्डहरों के कुछ न बचा था, सर्वाधिक शक्ति सम्पन्न मुसलमानी राज्य का विस्तार अटलांटिक समुद्र से लेकर चीन की दीवार तक और कैस्पियन समुद्र