किनारों से लेकर हिन्दमहासागर के किनारों तक फैला हुआ था। अब भी उसकी यह हविस बाक़ी थी कि वह सीज़र के उत्तराधिकारियों को उनकी राजधानी से निकाल दे।
परन्तु अरब के आन्तरिक झगड़ों ने यूरोप की रक्षा कर ली। तीन समूहों के जो अपने भिन्न-भिन्न रंग के झण्डे रखते थे ख़लीफ़ा के राज्य के तीन टुकड़े कर डाले। उमैया वंश वालों का झण्डा सफेद रंग का था। फातिमा वंश वालों का हरा था और अब्बारियों का काला था। यह अन्तिम झण्डा मोहम्मद के चचा के समूह का था। इस झगड़े का यह फल हुआ कि दसवीं शताब्दी में मुसलमानी राज्य तीन भागों में विभक्त होकर बग़दाद, काहिरा और कारडोआ के राज्य बन गये। मुसलमानों की राजनैतिक एकता का अन्त होगया और ईसाई संसार को दैवी सहायता से रक्षा मिली। अन्त में अरबी धर्म धीमा पड़ा और तुर्की और बर्बर शक्तियाँ उठीं।
मुसलमान बड़े भारी मग़रूर होगये थे और वे पूर्ण रीति से घरेलू झगड़ों में फँसे हुए थे। आकले ने लिखा है कि मुसलमानों का कोई ऐसा मामूली अफ़सर न था जो तमाम यूरोप की सम्मिलित सेनाओं से हारने पर भी अपनी भारी बेइज्जती न समझता रहा हो। इनकी घृणा के विषय में यह उदाहरण काफी है कि रोमन सम्राट् सेनीफरस ने ख़लीफ़ा हारूं रशीद के पास एक पत्र भेजा था, जिसका उत्तर यह दिया गया था कि---अत्यन्त दयालु ईश्वर के नाम पर मुसलमानों का खलीफ़ा हारूं रशीद रोमिय कुत्ते सेनीफरस के नाम पत्र लिखता है, "हे क़ाफिर-माता के पुत्र! मैंने तेरा पत्र पढ़ा, उस का उत्तर तू सुनेगा नहीं, देखेगा।" और इस पत्र का उत्तर रक्त और अग्नि के अक्षरों में फीजिया के मैदानों में लिखा गया।
यह सम्भव है कि हारी हुई जाति अपने देश को फिर से जीतले, परन्तु स्त्री हरण का प्रतिकार नहीं है। यह अमर पराजय है। जब अबूउवैदा ने रगरीट आक नगर लेने की खबर ख़लीफ़ा उमर के पास भेजी थी, तब उमर ने उसे कोमल शब्दों में मलामत दी थी कि तूने वहाँ की औरतों के साथ सिपाहियों को ब्याह क्यों नहीं करने दिया। वे शब्द आज्ञा पत्र पर इस ढंग के थे कि यदि वे लोग सीरिया में ब्याह करना चाहते हैं तो उन्हें कर लेने दो और जितनी लौंडियों की उन्हें आवश्यकता हो उतनी लौंडियाँ रख सकते हैं