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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/५९

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वाशिङ्गटन इरविन साहब 'मोहम्मद की जीवनी' में लिखते हैं:---

"मोहम्मद ने जो घोषणा-पत्र मदीने पहुँच कर मुसलमानों के लिए जारी किया था, उसमें उसने लिखा था कि---'जो मुसलमान मेरे धर्म का प्रचार करना चाहे उसको शास्त्रार्थ के झगड़ में नहीं पड़ना चाहिये अपितु उसका कर्तव्य है कि जो आदमी इस्लाम धर्म को अङ्गीकार न करे उसको यमपुर भेज दे क्योंकि जो मुसलमान इस्लाम के निमित्त लड़ता है चाहे वह मारे चाहे मरे इसमें सन्देह नहीं कि उसके लिए बहुमूल्य इनाम तैयार है। तलवार ही स्वर्ग और नर्क की कुंजी है। जो मुसलमान धर्म के निमित्त तलवार चलाता है वह भारी इनाम पाने का अधिकारी हो जाता है। लड़ने वाले के रक्त का एक बिन्दु भी व्यर्थ नहीं जाता। जो दुःख और कष्ट धर्म युद्ध में मुसलमानों को उठाना पड़ता है, वह ईश्वर के यहाँ ज्यूँ का त्यूँ लिख लिया जाता है। इस्लाम के लिए मरना और कष्ट उठाना नमाज और रोजे से भी बढ़कर है। जो मुसलमान इस्लाम के निमित्त युद्ध में मारा जाता है उसका सारा पाप क्षमा कर दिया जाता है। वह सदा के लिए मृगनयनी अप्सराओं के साथ आनन्द भोगता है। काफ़िरों को इस्लाम में लाने के लिए तलवार से बढ़कर दूसरा उपदेश नहीं है। मुसलमानों को चाहिए कि काफ़िर मूर्त्ति-पूजकों को जहाँ कहीं देखें मार डालें।' जिस समय मोहम्मद ने तलवार की धार पर इस्लाम को फैलाने की घोषणा की और जिस समय उसने अरब के लुटेरों को विदेशियों के लूटने का चसका दे दिया उसी समय से उसके जीवन चरित्र में लूट-मार का आरम्भ हो गया।"

सैयद मोहम्मद लतीफ़ 'हिस्ट्री आफ़ दी पंजाब' नामक पुस्तक में लिखते हैं:---

"अरब की लुटेरी जातियों को मोहम्मद का लोक और परलोक के सुख और धन-दौलत का लालच दिलाना उनके जोश को भड़काने के लिए काफी था। इस लालच से उनकी युद्ध-शक्ति और विषय-कामना भभक उठी। मोहम्मद ने अरबियों की बुझी हुई कामना में बिजली भर दी। क़ुरान और तलवार को हाथ में लेकर अपने अनुयायी मुसलमानों की शक्ति से उत्साहित होकर मोहम्मद ने संसार के शिष्टाचार और धर्मशीलता के