काफी आवभगत की। उन्हें मस्जिदें बनाने और जमीन खरीदने की आज्ञा देदी। इससे मालाबार में बड़ी जल्दी आठवीं शताब्दी में मुसलमान फैल गये और उन्होंने अपने धर्म का प्रचार प्रारम्भ कर दिया। यह झटपट फैला भी। इसके कारण थे। एक तो मुसलमानों में पादरी या पुरोहित न थे—प्रत्येक व्यक्ति धर्म प्रचारक था। दूसरे उनके वैभव, धन और वीरता से मालाबार तट की दरिद्र जातियाँ प्रभावित हो गई थीं। फिर उनके विचारों, स्वभावों, रीतियों और चालचलन में एक नवीन कौतूहल था---और उनका धर्म सीधासादा और सुबोध था। उनकी उपासना हृदयग्राही थी। वे दिन भर में अनेक बार ईश्वर का ध्यान करते थे। रेनान जैसे कट्टर नास्तिक और विद्वान् फ्रैंच लेखक ने एक बार लिखा था कि "जब मैं मस्जिद जाता हूँ तब मेरा हृदय एक अकथनीय शक्तिशाली भाव से उद्विग्न हो जाता है और मेरे मन में खेद उत्पन्न होता है कि मैं मुसलमान न हुआ।"
रेनान जैसों के हृदय पर प्रभाव पड़े तो औरों का तो कहना ही क्या है! उनमें नमाज़ की सफ़बन्दी, रीजों की सख्ती, खैरात और उश्र के नियम, परस्पर समता का व्यवहार ऐसी बातें थीं कि देखने वालों पर उनका असर पड़ता था।
यह वह समय था जबकि हिन्दू धर्म में एक विप्लव मच रहा था। बौद्ध, जैनी, वैष्णव, शैव, शाक्त परस्पर भयानक संघर्षों, कुरीतियों और अन्धविश्वासों में फँसे थे। ब्राह्मणों ने बौद्धों और जैनियों को नष्ट प्रायः कर दिया और शैव और वैष्णवों की प्रबलता हो रही थी। राजनैतिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न थी---प्राचीन राजघराने जर्जर हो गये थे और नये वंश उठ रहे थे। हार्दिक दुर्बलता और अन्धविश्वासों का हाल राजवंशों तक में गिर गया था। जिसका एक उदाहरण सुनिए---मालाबार कोदंगल्लूर के राजा पैरूमल ने स्वप्न देखा कि चाँद के दो टुकड़े हो गये हैं। सुबह उसने अपने दरबारी विद्वानों से उसका अर्थ पूछा--पर किसी का भी उत्तर न भाया। संयोग से एक मुसलमानों का काफिला लङ्का से लौट रहा था---उसके सर्दार तकीउद्दीन ने जो स्वप्न की व्याख्या की वह राजा को जँच गई। बस वह मुसलमान हो गया। उसका नाम अब्दुर रहमान