पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/७२

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की। यह गजनी का रहने वाला था। लाहौर में आकर बसा और १०७२ ई० में वहीं उसकी मृत्यु हुई। शेख़ इस्माइल बुख़ारी ग्यारहवीं शताब्दी में आया। फ़रीदुद्दीन अत्तार जो तज़किरतुल औलिया और मन्त कुत्तैर का रचयिता है, बारहवीं शताब्दी में आया। शेख़ मुईनुद्दीन चिश्ती ११९७ में अजमेर में आया। उस समय पृथ्वीराज जीवित थे। अजमेर के मन्दिर के महन्त रायदेव और योगीराज अजपाल ने इसके हाथों इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। चिश्तिया मठ के बड़े-बड़े सूफियों में कुतुबुद्दीन वख्तियार काफ, फ़रीदुद्दीन गंजशकर निजामुद्दीन औलिया आदि थे। सुहरवर्दी सम्प्रदाय वालों में जलालुद्दीन तब्रीज़ों, क़ादरियों में जलालुद्दीन बुख़ारी, बाबा फरीद पाकपरनी थे। अब्दुल क़दीम अलजीली जिन्होंने सूफ़ी मज़हब के विद्वान इब्नल अरबी की पुस्तकों की टीका लिखी है, और इन्साने कामिल की रचना की है, १३८८ में यहाँ आया। इसी शताब्दी में सैयद मुहम्मद नेसूदराज़ ने महाराष्ट्र में बहुत कुछ इस्लाम का प्रचार किया। पीर सद्रुद्दीन ने खोजा जाति को जन्म दिया और सैयद यूसुफ़उद्दीन ने मोमना को। इन सूफियों के अतिरिक्त बहुत से फकीर जिनका सम्बन्ध किसी भी मज़हब से न था, देश भर में घूमते थे। इनमें शाह मदार, सख़ी सरवर और सतगुरु पीर प्रसिद्ध थे।

इन साधुओं ने छिन्न-भिन्न हिन्दुओं में इस्लाम के प्रचार में कितनी सहायता दी है---इस पर विचार करना चाहिये। इन लोगों ने बिना ही ज़ोर जुल्म के और बिना ही तलवार की सत्ता के मुसलमान धर्म का प्रचार किया। और यह उस समय अति सरल था क्योंकि जैसा अलबरूनी लिखता है हिन्दू धर्म इस योग्य न रह गया था कि उसमें कोई भी ब्राह्मणोत्तर व्यक्ति आत्मसम्मान से रह सके। ब्राह्मण और क्षत्रिय मानों उस काल में हिन्दू समाज के सर्वेसर्वा थे। इसके सिवा ये सभी समाचार-विनिमय करते थे।

बारहवीं शताब्दी में एक फ़कीर सैयद इब्राहीम सहीद भारत में आये और दक्षिण में बहुत से लोगों को इस्लाम की दीक्षा दी। इसके बाद बाबा फ़खरुद्दीन ने भी बड़ा भारी इस्लाम का प्रचार किया और पेन्नुकोण्डा के हिन्दू राजा ने इस्लाम स्वीकार कर लिया। उधर यह प्रचार भीतर ही भीतर बढ़ रहा था और इधर इनके द्वारा दक्षिण भारत का व्यापार