से अपने वंश में रिश्तेदारियाँ कर लीं। केवल चित्तौर ही अकेला रह गया था, जिसने अन्त तक विरोध किया और अधीनता स्वीकार नहीं की।
अकबर ने स्वयं चित्तौर को घेरा। राणा उदयसिंह पर्वतों में चले गये और राठौर जयमल ने युद्ध किया। भयानक युद्ध के बाद चित्तौर का पतन हुआ। सहस्रों स्त्रियाँ जल गई और बचे हुए योद्धा केसरिया बाना पहन कर जूझ मरे।
महाराणा प्रताप ने बाईस वर्ष अकबर से युद्ध किया और चित्तौर के अतिरिक्त सब प्रदेश छीन लिया और राजधानी उदयपुर बसाई।
बङ्गाल में दाऊदखाँ अफग़ान की अमलदारी अब भी थी। समय पाकर अकबर ने आगमदल के युद्ध में सदा के लिये उन्हें भी नाश कर दिया। राजा टोडरमल बङ्गाल के हाकिम बने। ये प्रथम श्रेणी के सेनापति और प्रबन्धक थे। मुसलमान बादशाह का यह पहला हिन्दू सरदार था। इसके बाद उसने काश्मीर, सिंधु और कंधार को फतह किया था--इन प्रान्तों को राजा बीरबल ने फतह किया और वे वहीं काम भी आये।
जिस समय दिल्ली में बैठकर अकबर समस्त उत्तर भारत को अधि- कृतःकर रहा था--उस समय दक्षिण में एक प्रबल हिन्दू राज्य था जो विजयनगर का था। यहाँ के राजा के पास सात लाख सेना थी और वहाँ का वैभव अद्भुत था। उस प्रबल राज्य को पड़ौसी मुसलमान राज्यों ने मिलकर तालीकोट के मैदान में विजय कर लिया, और बड़ी क्रूरता से हिन्दुओं का विध्वंस किया। फिर वे स्वयं परस्पर लड़ने लगे। अवसर पाकर अकबर ने अपने पुत्र मुराद को सेना लेकर दक्षिण में भेजा और शीघ्र ही अहमदनगर बरार और खानदेश अधिकृत कर लिये।
अकबर ने अपनी चतुराई और विलक्षण राजनीति से शक्तिशाली राज- पूतों को मित्र बना लिया। उसने राजपूत सरदारों की आधीनता में राजपूतों की सेनाएँ भेजीं और उन्हें परास्त किया। उसने गुजरात को विजय किया। फिर बुरहानपुर आर दौलताबाद तक फतह करता चला गया और दक्षिण में पूरा दबदबा पैदा कर लिया। इसके बाद उसने काश्मीर को फतह किया, जिसमें उसको कुछ भी कष्ट न उठाना पड़ा। उसके बाद उसने चित्ताड़ पर आक्रमण किया और बड़ी कठिन लड़ाई के बाद उसे विजय किया। इसके