तोपची---"खुदाबन्द, बन्दा निशाने को देख नहीं सका, यदि शराब पी होती तो सम्भव था निशाना ख़ाली न जाता।"
बादशाह ने शराब लाने का हुक्म दिया। तोपचीने सारी बोतल चढ़ा ली और फिर मूँछे पूछता हुआ बोला, "हुज़ूर, चादर हटाली जाय और एक लकड़ी पर एक बर्तन रख दिया जाय।" यही किया गया। तोपची ने ऐसा गोला मारा कि लकड़ी और बर्तन के धुर्रे उड़ गये। बादशाह ने तबसे फिरङ्गियों को अपने पीने के लिये शराब खींचने की आज्ञा देदी। वह बहुधा कहा करता था---फिरङ्गी और शराब साथ ही साथ पैदा हुए हैं। और शराब के बिना उनकी वही दशा होती है जो पानी के बिना मछली की। अकबर के दर्बार में सुनार, तोपची, डाक्टर आदि बहुत से फिरङ्गी नौकर थे। इन्होंने अर्ज की कि हमें एक पादरी दिया जाय। तब अकबर ने गोआ से पादरी बुलवाया और आगरे में गिरजा बनाने की आज्ञा देदी।
इस बादशाह ने यह कानून अपने वंश के लिये बनाया कि शाही खान- दान की लड़कियों की शादियाँ न की जायें। यह काम इस प्रकार हुआ कि बादशाह ने अपनी पुत्री की शादी एक अमीर के साथ कर दी थी---कुछ दिन बाद वह विद्रोही हो गया और प्राण दण्ड दिया गया। उसी समय से यह क़ानून बनाया गया, जिसे औरङ्गजेब ने अपनी बेटी की शादी करके तोड़ा। शाहजादियों की शादी न होने से मुग़ल खानदान में बहुत से भीतरी गुल खिलते रहे, यह बात सभी जानते हैं। बादशाह पठानों से सदा सतर्क रहता था और उसका हुक्म था कि किसी पठान को चार हज़ार रु० वार्षिक से अधिक वेतन न दिया जाय। न सूबे का अधिकारी बनाया जाय। बादशाह ने यह भी नियम बनाया था कि दर्बार में सिवा शाहज़ादों और एलचियों के सब सर्दार खड़े रहें। यह नियम मुग़ल दर्बार में अन्त तक बना रहा। इसके बाद उसने 'दीने इलाही' नामक मज़हब चलाया।
बादशाह को शिकार का बहुत शौक़ था। एक बार वह एक शेर के पीछे दौड़ते दौड़ते बीहड़ जङ्गल में घुस गया। अन्त में एक स्थान पर थक कर सुस्ताने लगा। उसने देखा कि एक अगरवानी रङ्ग का साँप पेड़ से उनकी तरफ आ रहा है। बादशाह ने एक तीर से बींध दिया। तीर साँप को मार कर बादशाह के पास आ गिरा। इतने ही में एक हिरन चौकड़ी भरता