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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/९५

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उधर से गुज़रा। बादशाह ने वही तीर उठा कर हिरन पर छोड़ दिया । यद्यपि तीर ने हिरन को छुआ ही था कि हिरन मर गया। बादशाह यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया---इतने में शिकारी लोग आ पहुँचे। बादशाह ने उन्हें हुक्म दिया कि हिरन का यहाँ घसीट लाओ। उन्होंने हिरन को छुआ ही था कि उसके बन्द-बन्द अलग हो गये। यह देख शिकारी बोले--जहाँपनाह यहाँ से जल्दी भागिये वरना इस ज़हरीले साँप की हवा से हम सब मर जायेंगे। हुजूर हवा के रुख़ के विरुद्ध बैठे हैं यही खैरियत हुई है।

बादशाह ने उस साँप को एक बोतल में बन्द करके रखने का हुक्म दिया और एक अफसर नियत किया कि जब बादशाह चाहे ज़हर तैयार करे। तब से एक महकमा इसी ज़हर का बन गया जो कई भाँति के विष तैयार रखते थे। यह विष तब काम में लाये जाते थे जब बादशाह किसी सर्दार को गुप्त रीति से मारने के काम में लाते। यह विष या तो वस्त्रों में लगाकर उसको दर्बार में पहना दिया जाता था या यदि वह दूर पर हो तो भेज दिया जाता था जिसे सम्मान प्रदर्शन करने के लिये उसे पहनना पड़ता था और उसके प्राण जाते थे। मुगल ख़ानदान में इस रीति से प्राण नाश करने का रिवाज़ पीछे तक जारी रहा।

इस महान् बादशाह की मृत्यु ऐसी ही एक दुर्घटना से हुई। बादशाह यदि अपने हाथ से किसी को पान देता था तो वह उसकी भारी प्रतिष्ठा समझी जाती थी। पर इस प्रतिष्ठा को पाकर कुछ ही मिनटों में बहुत से सर्दार जीवन-लीला समाप्त कर चुके थे। बादशाह के पानदान में तीन ख़ाने थे, जिन में एक में पान, दूसरे में सुगन्धित गोलियाँ रहती थीं, जिन्हें बादशाह स्वयं खाता था, तीसरे में वैसी ही सुगन्धित गोलियाँ थीं परन्तु वह हलाहल जहर होती थीं। बादशाह प्रसन्न होने पर उसे पान देता-फिर एक खुशबूदार गोली देता–पर जिसे मारना होता ज़हर की गोली देता था। एक बार एक अमीर को ज़हर की गोली देते हुए भूल से वह स्वयं ही गोली खा गया और इस प्रकार अजमेर में उसकी मृत्यु हुई। इसने उन्चास वर्ष सात मास तीन दिन राज्य किया और अनेक मुल्क विजय किये तथा मुग़ल सल्तनत कायम की।