पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८७
 

उसके अन्तिम दिन अशान्ति ही में कटे। उसके सभी पुत्र शराबी और लम्पट थे। शराब ही के कारण मुराद दान्याल की मृत्यु हुई।

आमेर का मानसिंह चाहता था कि उत्तराधिकारी में उसके भांजे खुशरू को तख्त पर बैठाया जाय। मगर अकबर सलीम को बादशाह बनाना चाहता था। उधर मानसिंह बड़ा प्रतापी था, उसकी शक्ति बहुत बढ़ गई थी, बादशाह ने उसे विष देना चाहा था, पर वह स्वयं खा गया।

इस बादशाह ने आमेर से तीन फर्लाङ्ग के फासले पर एक विशाल मक़बरा बनाया आर एक भारी बाग़ लगाया जिसका नाम सिकन्दरा रक्खा। यह मक़बरा बहुत ऊँचा और भारी गुम्मद वाला है। यह संगमर्मर और बहुमूल्य जवाहरात से जड़ा हुआ था। तमाम छत पर गिलिट का काम बहुत कारीगरी से किया हुआ था, और भाँति-भाँति के रंग से दीवारें रंगी हुई थीं। बाग बहुत बड़ा और सफीलों से घिरा था, जगह-जगह बैठने के स्थान बने थे। औरंगजेब ने सब चित्रकारी पर सफेदी करा दी थी, क्यों कि वह चित्रकारी को इस्लाम धर्म के विपरीत समझता था।

वीनस निवासी 'मनूची' इस सम्बन्ध में लिखते हैं---

"मेरी इच्छा थी कि औरंगजेब की आज्ञा कार्यरूप में परिणत होने से प्रथम ही एक बार इन चित्रों को देख लूँ। अतएव इस विचार से कई बार इस मकबरे को देखने के लिये बाग़ में गया। बाग़ के बड़े द्वार पर सलीब, कुवांरी मरियम और स्नेर इगनेस के चित्र थे। मेरे मन में उपरोक्त गुम्मद के अन्दर जाकर देखने की बड़ी इच्छा थी। चुनाँचे एक अफसर ने जो मुझसे राजवैद्य होने के कारण कुछ काम लेना चाहता था, मुझे इस शर्त पर वहाँ ले जाना स्वीकार किया कि मैं बड़े अदब और प्रतिष्ठा से इस प्रकार कबर को सलाम करूँ जिस तरह पर कि वह करे। गोया कि बादशाह ज़िन्दा हैं और उसे ही अभिनन्दन कर रहे हैं। उसने द्वार खोला और मैंने चुपचाप अदब से कबरको सलाम करके भीतर प्रवेश किया, जिसके पश्चात् नंगे पाँव चारों तरफ घूम फिरकर हर वस्तु को देखा। जैसा कि मैंने लिखा है, दीवार में पवित्र सलीब खड़ी है, जिसके दायीं ओर कुवारी मरियम और बाँई ओर इगनेस चित्र थे। गुम्मद की छत पर फरिश्तों के, वलियों के और दूसरे कई एक प्रकार के चित्र थे एवं कई एक ऊदसोज (वह पान