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नायिका वर्णन

 

२–उत्कंठिता
दोहा

पति कों गृह आए बिना, सोच बढ़ै जिय जाहि।
हेतु बिचारै चित्त मैं, उतकण्ठा कहु ताहि॥

शब्दार्थ—सोच बढ़ै–चिन्ता बढ़ै। जिय–हृदय में। जाहि–जिसके।

भावार्थ—पति के घर न आने पर जिसके हृदय में चिन्ताबढ़े और जो उसके न आने का कारण सोचती रहे, उसे उत्कण्ठिता नायिका कहते हैं।

उदाहरण पहला
सवैया

पिया जा हितप्यारिह के पदपङ्कज, पूजिबे कों पकरौ पन सो।
सुबिसारि दियो तिहि मेहीं निरादरे, घोर पतिग्रह को धन सो॥
इन पायनही विष बीरी भई, अरु सीरी बयारि बरै तन सो।
कहु क्यों न अगारु सो हारु लगै, हिय मै घनसार घन्यो घन सो॥

शब्दार्थ—अंगारु सो–अंगारे के समान। हारु–हार। घनसार–कपूर। घन सो–हथौड़े की चोट के समान।

उदाहरण दूसरा
सवैया

मारग हेरति हौं कब की, कहौ काहे ते आये नहीं अबहूँ हरि।
आवत हैं किधो ऐहैं अबै, कविदेव कै राखे है कोहू कछू करि॥