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भाव-विलास

 

शब्दार्थ—चन्द...निसि–चन्द्रमा की ओर देखते देखते रात बीत गयी। नाह की चाह–पति को देखने की अभिलाषा। प्रातही–प्रातःकाल ही। कहूँ बसि–(रात भर) कहीं रहकर। कम्पत–काँपती हुई। कोप की–क्रोध की।

बिप्रलब्धा
दोहा

जाकों पति की दूतिका, लै पहुचै रतिधाम।
तहँपतिमिलै न जाहि सो, बिप्रलब्धिकाबाम॥

भावार्थ—जिसके प्रेमी की दूती उसे संकेत स्थल पर ले जाय और वहाँ जाने पर प्रेमी न मिले उसे विप्रलब्धानायिका कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

दूती लिवाइ चली तहँ बालको, जा बन बालम सों मिलि खेल्यो।
भेषु बनाइकें भूषन साजि, सुगन्धित मोर कों साजु सकेल्यो॥
आन दही तें यहाँ तैं गई तिय, देखि उहाँ रति कुंज अकेल्यो।
बीरी बिगारि सखीन सो रारि के, हार उतारि उतै गहि मेल्यो॥

शब्दार्थ—लिवाइ–लेजाकर। बालम–पति। बिगारि–बिगाड़ कर। सखीन सों–सखियों से। रारिकै–झगड़ा करके। हार उतारि–हार को उतार कर।