पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१४३
अलंकार


शब्दार्थविमल-निर्मल, स्वच्छ। किंकिनी-करधनी, कमर का आभूषण विशेष। जगर मगर-प्रकाशमान। लली वषभान की-राधा।

२—उपमा
दोहा

 
नून गुनहिं जहँ अधिक गुन, कहिये बरनि समान।
अलङ‍्कार उपमा कहत, ताही सुमति सुजान॥

शब्दार्थनून-न्यून, कम।

भावार्थकिसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु के साथ न्यून अथवा अधिक गुण के कारण, समानता की जाय; उसे उपमा अलंकार कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

राति जगी अँगिराति इतै, गहि गैल गई गुनकी विधि गोरी।
रोमबली त्रिबली पै लसी, कुसमी अँगियाहू लसी उर ओरी॥
ओछे उरोजनि पै हँसि कें, कसि के पहिरी गहरी रंग बोरी।
पैरि सिवार सरोज सनाल, चढ़ी मनों इन्द्रवधूनि की जोरी॥

शब्दार्थअँगिराति-अंगड़ाती है। गुन की निधि-गुणों की खानि, गुणवती। रोमबली-रोमावलि। त्रिबली-उदर की तीन रेखाएँ। कुसुमी-कुसुम्सी रंग की। पैरि-पहनकर। सिवार-जल में होनेवाली लताविशेष। इन्द्रबधूनि-बीरबहूठी। जोरी-जोड़ी, युग, दो।