उदाहरण (उदात्त)
सवैया
बाल कों न्योति बुलाइवे कों, बरसाने लों हौं पठई नन्दरानी।
श्रीवृषभान की संपति देखि, थकी अतिही गति औ मति बानी॥
भूलि परी मनिमन्दिर मैं, प्रतिबिंबन देखि विशेष भुलानी।
चारि घरी लों चितौत चितौत, मरू करि चन्दमुखी पहिचानी॥
शब्दार्थ—न्योति—न्योता देकर, निमन्त्रण देकर। बरसाने लौं—बरसाने (ग्राम विशेष) तक। पठई—भेजी। चारि पहिचानी—वार घड़ी तक देखती रही तब कही कठिनता से चन्द्रमुखी को पहचान सकी। मरू करि—मुश्किल से, कठिनता से।
१८—दीपक
दोहा
अरथ कहैं एकै क्रिया, जहाँ आदि मधि अन्त।
अथवा जहँ प्रतिपद क्रिया, दीपक कहत सुसंत॥
शब्दार्थ—आदि—आरम्भ। मधि—बीच।
भावार्थ—जहाँ किसी समस्त पद के आदि, मध्य और अन्त की क्रिया एक ही हो वहाँ दीपक अलंकार होना है।
उदाहरण
सवैया
मोहि लई हिरनी लखि कै, हरि नीरज सी बड़री अँखियानसों।
सारिका, सारसिका, रसिका, सुकपोत कपोती पिकी मृदुबानिसों॥
देव कहै सब भूपसुता अनुरूप, अनूपम रूप कलानिसों।
गोपबधू बिधु से मुख की घन, सुन्दर हेरि हरी मुसक्यानियों॥