तृन चारु चरै रुचि सों चहुँ ओर, चलै चितवै सुचि सों हिय के।
सब तें सब भांति भली हरिनी, निसिबासर पास रहै पिय के॥
शब्दार्थ—येई–येही, इन्हीं को। विरंच—ब्रह्मा। इतौ—इतना। छिनौ भर—क्षण भर भी। बालम—पति। सबतें.....पिय के—सब से बढ़कर तो हिरनी ही है जो सदा अपने पति के पास रहती है।
उदाहरण (व्याजस्तुति)
सवैया
को हमकों तुमसे तपसी बिनु, जोग सिखावन आइ है ऊधौ।
पै यह पूछियै जू उनको सुधि, पाहिली आवति है कबहूँ धौ।
एक भली भई भूप भये अरु, भूलि गये दधि माखन दूधौ॥
कूबरी सी अति सूधी बधू को, मिल्यो बर देव जू स्याम सौ सूधो।
शब्दार्थ—पाछिली—पिछली। कबहूंधौ—कभी। माखन दूधौं—मक्खन और दूध। सूधौं—सरल।
२४—आवृत्ति दीपक
दोहा
आवृति दीपक भेद है, ताहू त्रिविधि बखान।
आवृति अर्थावृत्ति अरु, पर पदार्थवृति जानु॥
शब्दार्थ—सरल है।
भावार्थ—आवृति दीपक, दीपक अलंकार का ही एक भेद है। यह भी तीन प्रकार का होता है। १—आवृत्ति २—अर्थावृत्ति ३—पदार्थावृत्ति।