पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२३
सात्विक-भाव


शब्दार्थ—थोरी—थोढ़ी, कम। वैस—उम्र। जोबन—यौवन। वितौतहि—देखते ही। मोहि लई—मोह लिया। हिरणी हरी लौं—ब्याध द्वारा घायल की गयी हरिणी के समान। वा घर—उस घर। लौं—तक। भिहराति—धबड़ाई हुई।

२—स्वेद
दोहा

क्रोध, हर्ष, संताप, श्रम, घातादिक भय लाज।
इनते सजल सरीर सो, स्वेद कहत कबिराज॥

शब्दार्थ—इनते—इनसे। संताप—कष्ट।

भावार्थ—क्रोध, हर्ष, संताप, परिश्रम, भय, लाज आदि के कारण अंग प्रत्यंग में जो जलकण दिखायी देने लगते हैं उन्हें कवि लोग स्वेद कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

हेलिन खेलिन के मिस सुन्दरि, केलि के मन्दिर पेलि पठाई।
बाल बधू बिधु सौ मुख चूमि, लला छल सों छतियाँ सों लगाई॥
लाल के लोल कपोलनि मैं, झलक्यो जल-दीपति दीप की झाँई।
आरसी मैं प्रतिबिम्बत ह्वै, मनो देव दिवाकर देत दिखाई॥

शब्दार्थ—हेलिन—सखियों ने। मिस—बहाने। केलि के मन्दिर—क्रीड़़ा—गृह में। पेलि पठाई—जबर्दस्ती घुसादी। बिधु सौ मुख—चन्द्रमा के समान मुख। चूमि—चूमकर। लोल—सुन्दर। कपोलनि—गाल। मैं—में झलक्यो जल दीपति दीप की झाई—पसीने में दीपक की लौ झलकने लगी। आरसी......दिखाई—मानो दर्पण में सूर्य का प्रतिबिम्ब झलक रहा हो।