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सात्त्विक-भाव


शब्दार्थ—प्रस्फुरन—रोमाञ्च।

भावार्थ—प्रिय के आलिंगन, हर्ष, भय, तथा शीत कोपादि के कारण जब शरीर कांपने लगता है और रोमाञ्च नहीं होता तब उसे वेपथु कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

देव दुहून के देखत ही, उपज्यो उरमैं अनुराग अनूनों।
डोलत है अभिलाष भरे, सुलग्यौं विरह ज्वर अंग अझूनों॥
तौ लौं अचानक ह्वै गई भेट, इतै उत ठौर निहारत सूनों।
प्रीति भरे उर भीति भरे वन, कुंज में कम्पति दम्पति दूनो॥

शब्दार्थ—दूहून—दोनों। उर में—हृदय में। अनुराग—प्रेम। अनूनों—अन्यून, बहुत। सूनों—एकान्त। भीति—भय, डर। दम्पति—पति-पत्नी।

५—स्वरभङ्ग
दोहा

जो रिस भय मुदमद भये, निकसै गदगद बानि।
ताही को स्वरभङ्ग कहि, कबिबर कहत बखानि॥

शब्दार्थ—रिस—क्रोध।

भावार्थ—क्रोध, भय, हर्ष आदि के कारण जो गद्गद् वाणी मुँह से निकलती है उसे कवि लोग स्वरभङ्ग कहते हैं।

उदाहरण
सवैया

परदेस तें प्रीतम आये हिए, इक आइ के आली सुनाई यही।