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सात्त्विक-भाव
७—अश्रु
दोहा
विपल विलोकत धूम भय, हर्ष, अमर्ष, विषाद।
नैनन नीर निहारिये, अश्रु कहे निरबाद॥
शब्दार्थ—निरबाद—निश्चय, अवश्य।
भावार्थ—धुँवा, भय, हर्ष विषादादि के कारण आँखो में जो पानी निकलने लगता है उसे अश्रु कहते हैं।
उदाहरण
सवैया
बोलि उठो पपिहा कहूं पीव, सु देखिबे को सुनि के धुनि धाई।
मोर पुकारि उठे चहुँ ओर, सुदेव घटा घिरकी चहुँघाँई॥
भूलि गई तिय को तन की सुधि, देखि उतै बन भूमि सुहाई।
साँसनि सों भरि आयौ गरौ अरु, आँसुन से अँखिया भरि आई॥
शब्दार्थ—धाई—दौड़ी। चहुँघाँई—चारों ओर। साँसनि सो—श्वास भरने से। भरि पायौ गरौ—गलाभर आया। आँसुन सों—आँसुओं से।
८—प्रलय
दोहा
प्रिय दर्शन, सुमिरन, श्रवन, होत अचलगति गात।
सकल चेष्टा रुकि रहैं, प्रलय कहैं कवि तात॥
शब्दार्थ—सुमिरन-स्मरण