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आंतर संचारी-भाव

 

मोह सुमृर्त धृति लाज, चपलता हर्ष बखानउ।
जड़ता दुख आवेग, गर्व उत्कण्ठा जानउ॥
अरु नींद अवस्मृति सुप्रति अब, बोध क्रोध अबहित्थ मति।
उग्रत्व व्याधि उन्मादअरु, मरन त्रास अरु तर्कतति॥

शब्दार्थ—सूया—असूया।

भावार्थ—निर्वेद, ग्लानि, शंका, असूया, मद, श्रम, आलस्य, दीनता, चिन्ता, मोह, स्मृति, धृति, लाज, चपलता, हर्ष, जड़ता, दुख, आवेग, गर्व, उत्कण्ठा, नींद, अपस्मार, अवबोध, क्रोध, अवहित्थ, मति, उपालम्भ, उग्रता, व्याधि, उन्माद, मरण, त्रास, औरतर्क ये ३३ आतरिक संचारी भाव हैं।

१—निर्वेद

चिंता अश्रु प्रकाश करि, अपनोई अपमानु।
उपजहि तत्व ज्ञान जहँ, सो निर्वेद बखानु॥

शब्दार्थ—अश्रु—आँसू।

भावार्थ—अपने को धिक्कारने तथा संसार के प्रति विरक्ति होकर तत्वज्ञान उत्पन्न होने को निर्वेद कहते हैं। इसमें चिंता, आँसू आदि लक्षण प्रकट होते हैं।

उदाहरण
सवैया

मोह मढ़यो चतुराई चढ़यो, चित गर्व बढ़यो करि मान सों नातौ।
भूलि परौ तब तौ मद मन्दिर, सुन्दरता गुन जोबन मातौ॥
सूझि परी कविदेव सबै अब, जानि परौ सिगरौ जग जातौ।
नैसुक मो में जो होतो सयान तौ, हो तो कहा हरि सो हित हातौ॥