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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/५७

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आंतर संचारी-भाव

 

भूलि गई गुरु लोग की लाज, गए ग्रह काज गली ग्रह गाढ़े।
भीतिन सों अभिरे भहराइ, गिरैं फिर धाइ फिरैं मुख काढ़े॥

शब्दार्थ—निसि बासर—राति-दिन। बीतत ठाढ़े—खड़े बीतता है। बौरी—उन्मत्त। भूलि......लाज—गुरु जनों की लज्जा करना भी भूल गयीं। भीतिन सो..... भहराइ—दीवालो पर भहरा कर गिरती हैं। फिरैं मुख काढ़े—मुँह बाए दौड़ रहीं हैं।

२३—अवबोध
दोहा

नींद गये भीजै नयन, अंग भंग जमुहाइ।
एक बार इन्द्रिय जगै, तेकउ नीद सुभाय॥

शब्दार्थ—भीजै नयन—आंखे भींजती है। जमुहाइ—जमुहाई लेती है।

भावार्थ—निद्रा के पश्चात् आँखों को मलकर, जमुँहाई लेने के बाद जो चेतनता आती है; उसे अवबोध कहते है।

उदाहरण
सवैया

सापने में गई देखन हौं सुनि, नाचत नन्द जसोमति कौ नट।
वा मुसक्याइ के भाव बताइ के, मेरोइ खैचिखरो पकरो पट॥
तौ लगि गाय रम्हाइ उठी, कविदेव, वधूनि मथ्यो दधि को घट।
चौंकि परी तब कान्ह कहूँ न, कदंब न कुंज न कालिंदी कौ तट॥