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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/२०

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(१०) . अनुज्ञा, लेख, मुद्रा, रत्नावली, गूढ़ोत्तर, सूचम, पिहित, व्याजोक्ति, गोक्ति, विवृतोक्ति, युक्ति, लोकोक्ति, छेकोक्ति वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति, उदात्त और अत्युक्ति का उल्लेख है। इनमें से अधिकांश ऐसे हैं जिनमें व्यंग्य से छिपा कर या उल्टी बातें कही जाती हैं । ये अलंकार वस्तुमूलक कहे जा सकते हैं अलंकारों को श्रेणीबद्ध करने का प्रयत्न कई प्राचार्या ने किया है। उनमें मत मतांतर होना अवश्यंभावी है। अलंकार शास्त्रियों का ध्यान इस और प्राकर्षित होना चाहिए । ३-ग्रंथ-परिचय हिंदी साहित्य में वीर तथा भक्ति काल के अनंतर रीति या अलंकार- कान का प्रारंभ भाचार्य महाकवि केशवदास से होता है, जिन्होंने पहले पहल नायिका भेद, हाव, भाव तथा अलंकारादि पर लक्षणग्रंथ लिखे हैं । यद्यपि कृपाराम, क्षेम श्रादि कुछ पूर्व कवियों ने इस विषय पर लेखनी चलाई थी पर वास्तव में ये ही इस विषय के प्रथम प्रार्य थे और माने जाते हैं। इनके अनंतर यह विषय अाधुनिक समय तक के हिंदी कवियों को अत्यंत प्रिय रहा । केशवदास के दो प्रसिद्ध ग्रथ कविप्रिया और रसिकप्रिया इसी विषय पर हैं । इनके बाद चिन्तामणि का काव्यविवेक और काव्यप्रकाश, भूषण का शिवराजभूषण और मतिराम के ललितललाम तथा रसराज हैं। इनके अनंतर इस विषय का प्रसिद्ध ग्रथ भाषाभूषण है, जो इन त्रिपाठी बंधुनों की रचनामों का समकालीन है। ~

  • इच्छा थी कि हिन्दी तथा संस्कृत अलंकार शास्त्र का संक्षिप्त इतिहास इस

भूमिका में दिया जाय और सामग्री भी एकत्र की जा रही थी पर समयाभाव से प्रथम संस्करण में नहीं दिया जा सका। संस्कृत अलंकार-शास्त्र का संक्षिप्त इतिहास काव्यादर्श के अनुवाद की भूमिका में दिया जा चुका है और हिन्दी का उसके साहित्य के इतिहास में प्रकाशित हो गया है। ये दोनों पुस्तकें भी इस ग्रंथ के संपादक की रचना हैं।