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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/२१

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( ११ ) . भाषाभूषण के रचयिता जसवंतसिंह कौन थे, इस विषय में कुछ मतभेद है। साधारणतः यही प्रसिद्ध है कि ये जसवंतसिंह मारवाद के अधीश्वर थे, जो मुगल सम्राट औरंगजेब के प्रसिद्ध सेनानी थे। इसके विरुद्ध डाक्टर ग्रियर्सन ने लालचन्द्रिका की भूमिका में लिखा है कि ये फर्रुखाबाद जिले के अंतर्गत तिर्वा के राजा थे। अपनी सम्मति की पुष्टि में उन्होंने कुछ भी नहीं लिखा है। वे उसे सर्वमान्य सा मान कर लिख गए हैं । भाषाभूषण ग्रंथ में न ग्रंथकर्ता का नाम और न निर्माण-काल ही दिया गया है, इसलिए बिना कुछ कारण बतलाए दो में से किसी एक मत के समर्थन में निज सम्मति देना उचित नहीं है । अतः अब कुछ विचार नीचे दिए जाते हैं । (१) यशवंतयशोभूषण के ग्रंथकर्ता कवि मुरारिदान ने लिखा है कि- भाषा में मत भरत के है प्रथमहिं यह ग्रंथ । नृपति बड़े जसवंत निज को मरुद्धर-कंथ ॥ इसका अर्थ स्पष्ट करने के लिए दो एक बातों का उल्लेख अावश्यक है। महाकवि केशवदासजी ने निज ग्रथों में भरत का अनुसरण नहीं किया है। मरुद्धर-कंथ का अर्थ मरुधराधीश अर्थात् मारवाद नरंश है और इस राजवंश में जसवंतसिंह नाम के दो राजे हुए हैं, जिनमें प्रथम भाषा- भूषण के रचयिता हैं और बड़े यशवंतसिंह कहलाते हैं। यशवंतयशो- भूषणकार ने एक शताब्दि पहले मारवार नरेश को भाषाभूषण का ग्रंथ- कर्ता माना है। ( २ ) काशी नागरीप्रचारिणी सभा द्वारा गवर्नमेंट जो हिंदी हस्त लिखित पुस्तकों की खोज कराती है, उसमें इस प्रथ की अनेक प्रतियों का पता लगा है पर दो विशेषरूप से उल्लेखनीय हैं । सन् १९०६.०८ की त्रैवार्षिक रिपोर्ट में जिस प्रति का उल्लेख है उसका लिपिकाल सन् १८७५ ईस्वी है और वह भी किसी प्राचीन प्रति की प्रतिलिपि है। उसी वर्ष की रिपोर्ट में तिर्वा नरेश जसवंतसिंह का समय सन् १७६७ ई० के लगभग .