पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाषा-भूपण [ मंगलाचरण ] बिघनहरन तुम हौ सदा गनपति होउ सहाइ । विनती कर जोरे करों दीजै ग्रंथ बनाइ ॥१॥ जिन्ह कीन्ह्यौ परपंच सब अपनी इच्छा पाइ । ताको हौ बंदन करौं हाथ जोरि सिर नाइ ॥२॥ करुना करि पोषत सदा सकल सृष्टि के प्रान । ऐसे ईश्वर को हिय रहौ रैनि दिन ध्यान ॥३॥ मेरे मन मैं तुम रहौ ऐसौ क्यों कहि जाय । ताते यह मनु पाप सों लीजे क्यों न लगाइ॥ ४ ॥ रागी मन मिलि स्याम से भयौ न गहिरौ लाल । यह प्रचरच उजल भयौ तज्यौ मैल तिहि काल ॥ ५ ॥ [चतुर्विध नायक ] एक नारि से हित करे से अनुकूल बखानि । बहु नारिन से प्रीति सम ताकौं दन्छिन जानि ॥६॥ मीठी बातें सठ करें करिकै महा बिगार । न धृष्ट को किये कोटि धिक्कार ॥ ७ ॥ प्रावै लाज