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पृष्ठ:भाषा-भूषण.djvu/३२

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( २ ) [त्रिविध नायक ] स्वकिया निज पति प्रीति कर, परकीया उपपत्ति । वैसिक नायक की सदा गनिका से हित रत्ति ॥ ८ ॥ [ नायिका जाति-भेद] पद्मिनि, चित्रिनि, संखिनी अरु हस्तिनी पखानि । विविध नायिका भेद में चारि जाति तिय जानि ॥ ६ ॥ [विविध नायिका] स्वकिया व्याही नायिका परकीया पर-पाम । से सामान्या नायिका जाको धन से काम ॥१०॥ [अवस्था-भेद ] बिनु जानें प्रज्ञात है जानैं जोषन ज्ञात । मुग्धा के द्वै भेद ये कषि सघ बरनत जात ॥ ११ ॥ मध्या सेो जामै दुवो लज्जा मदन* समान । प्रति प्रचीन प्रौढ़ा है जाको पिय में प्रान ॥ १२ ॥ [ परकीया के छ भेद] क्रिया बचन में चातुरी यहै बिदग्धा रीति । बहुत दुरायेहू सखी लखी लच्छिता-प्रीति ॥ १३ ॥ गुप्ता रति-गापित करे, तृप्ति न कुलटा प्राहि । निहचै जानत पिय-मिलन मुदिता कहिये ताहि ॥ १४ ॥ बिनसै ठौर सहेट की, प्रागे होइ न हाद। जाइ सके न सहेट मैं अनुसयना है सेई ॥ १५ ॥

  • पाठा०-लाज मनोज ।