( ८ ) [ रूपकालंकार ] हैं रूपक द्वै भांति के मिलि तद्रूप प्रभेद । अधिक न्यून सम दुहुन के तीनि तीनि ये भेद ॥ ५४॥ मुख-ससि या ससि ते अधिक उदित जोति दिन रात । सागर ते उपजी न यह कमला प्रपर सुहाति ॥ ५५ ॥ नैन कमल ए ऐन हैं और कमल किहि काम । गँवन करति नीकी लगति कनकलता यह बाम ॥ ५६ ॥ अति सोभित बिद्रुम-अधर नहिं समुद्र-उत्पन्न । तुम मुख-पंकज बिमल अति सरस सुबास प्रसन्न ॥ ५७ ॥ [परिणामालंकार ] करे क्रिया उपमान है बननीय परिनाम । लोचन-कंज बिसाल तें देखो देखति बाम ॥ ५८ ॥ [द्विविधि उल्लेख] सेो उल्लेख जु एक को बहु सम. अर्थिन सुरतरु, तिय मदन, अरि को काल प्रतीति ॥ ५ ॥ बहु बिधि बरनैं एक को बहु गुन से उल्लेख । तू रन अर्जुन, तेज रवि, सुर-गुरु बचन बिसेष ॥ ६० ॥ [स्मरण, भ्रम, संदेह अलंकार ] सुमिरन, भ्रम, संदेह ए लच्छन नाम प्रकास । सुधि प्रापति वा बदन की देखें सुधानिवास ॥ ६१ ॥ बदन सुधानिधि जानि ए तुध सँग फिरत चकोर । बदन किधौं यह सीतकर किधौं कमल भये भार ॥ ६२॥ रीति ।
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