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( २६ ) [छेकोक्ति अलंकार] लोकोक्तिहिं कछु अर्थ से मे छेकोक्ति प्रमानि । जो गाइन को फेरिदै ताहि धनंजय जानि ॥ १८८ ॥ [ वक्रोक्ति अलंकार ]] बक्रोक्ती स्वर श्लेप में अर्थ फेर जो होइ। रसिक अपूरब हो पिया बुग कहत नहिं कोइ ॥ १८६ ॥ [ स्वभावोक्ति अलंकार] स्वभावाक्ति यह जानिए वर्नन जाति सुभाइ। हँहि हँसि देखति, फिरि झुकति, मुँह मारति इतराइ ॥१६॥ [भाविक अलंकार ] भाविक भूत भविष्य जो परतछ कहै बताइ । बूंदाबन में प्राजु वह लीला देखी जाइ ॥ १६१ ॥ [ उदात्त अलंकार ] उपलच्छन दै सोधिय अधिकाई मेा उदात्त । तुम जाके बस होत हौ सुनत तनक सी बात ॥ १६२ ॥ [ अत्युक्ति अलंकार ] अलंकार प्रत्युक्ति यह बनत अतिसय रूप । जाचक तेरे दान ते भए कल्पतरु, भूप ॥ १६३ ॥ [निरुक्ति अलंकार ] सो निरुक्ति जब जोग तं प्रर्थकल्पना प्रानि । ऊधो कुबजा बस भए निर्गुन वहै निदानि ॥ १९५॥