( ४५ ) ( १ ) पदावृत्ति दीपक-- जब केवल पदों की श्रावृत्ति हो । अर्थ भिन्न हो । ) जैसे, सखी देखो बादल बरस रहा है, जिससे रात्रि बरस ही के समान हो रही है। बरसै है पद की श्रावृत्ति होते हुए भी अर्थ भिन्न भिन्न हैं । ( २ ) अर्थावृनि दीपक-जब केवल अर्थ को प्रावृत्ति हो ( पद भिन्न हों ) । जैसे, कदंब फूल रहा है और केतकी में भी फूल लगे हुए हैं । फूलै और विकसै में पद दो होते श्रथ एक है। ( ३ ) पदार्थावृत्ति दोपक-जब पद और अर्थ दोनों की श्रावृत्ति हो । जैसे मोर मत्त है और चातक भी मत्त है, दोनों की प्रशंसा करो। मत्त शब्द की उसी अर्थ में श्रावृत्ति है। -जब उपमेय और उपमान के साधारण धर्म अलग अलग दो समान वाक्यों में कहे जायें । जैसे, सूर्य को शोभा उसके तेज से है और शूरवीर की उसके बाण से है। ८७-नाम ही से लक्षण प्रकट है। उदा० --जैसे चंद्रमा कांतिमान है वैसे तुम कीर्तिमान हो। उपमेय और उसके साधारण धर्म तथा बिंबप्रतिबिंबभाव से उपमान तथा उसके साधारण धर्म का वर्णन हो । प्रतिवस्तूपमा में दोनों का एक हो धम शब्दभेद से कहा जाता है पर दृष्टांत में भिन्न भिन्न धर्म । कति और कीर्ति ) का उल्लेख होता है। भूषण ने चंद्रालोक के अनुसार निदर्शना का लक्षण यों लिखा है- सरिस वाक्य युग अरथ को करिए एक अरोप । अर्थात् दो सदृश वाक्यों में अर्थ के ऐक्य का श्रारोप करना । संभव या असंभव होने से निदर्शना के दो भेद होते हैं और असंभव दो प्रकार की होती । भाषाभुपण में यही तीन प्रकार की कही गई है, प्रथम दो असंभव तथा तीसरी संभव है- ५५-६०- no
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