पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१०२

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भाषाओं का वर्गीकरण ८१ पश्चिमी ईरानी की एक भाषा मीडियन है। नाम के अतिरिक्त इस भाषा का कुछ पता नहीं है। ईरान की अन्य भाषाएँ भी सर्वथा लुप्त हो गई हैं। ये सब पश्चिमी ईरान की विभाषाएँ थीं। फारस प्रांत की विभाषा राजाश्रय पाकर इतनी बढ़ी कि अन्य विभाषाओं और बोलियों का उसने उन्मूलन ही कर दिया। प्राचीन फारसी की वर्णमाला अवस्ता से अधिक सरल मानी जाती है। उदाहरणार्थ अवेस्ता में हस्व एँ और औ होते हैं पर प्राचीन फारसी में उनके स्थान में संस्कृत की नाई अही होता है, जैसे जहाँ अवस्ता में 'य'जी' होता है, वहाँ संस्कृत में 'यदि' और प्राचीन फारस में 'थदिय' होता है। इसी प्रकार प्राचीन का व्यंजनों में भी परिवर्तन देख पड़ता है। उदाहरणार्थ अवेस्ता में भारोपीय ज ( घोप ज) पाया जाता है पर प्राचीन फारसी में उसके स्थान में द हो जाता है और संस्कृत में ऐसे स्थानों में 'ह' पाया जाता है; जैसे- अवेस्ता प्रा० फा० सं० यम् अर्जेम अदम प्राचीन फारसी में प्राकृतों की नाई पदांत में व्यंजन प्रायः नहीं रहते। ऐसे उदारण वैदिक में भी मिलते हैं पर प्राचीन फारसी में यह प्रवृत्ति बहुत अधिक बढ़ गई है । जहाँ सं० में अमरत् और अवस्ता में अवरत आता है, वहाँ प्राचीन फारसी में अवर आता है। इन्हीं बातों से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अचस्ता और वैदिक भाषा प्राचीन फारसी से प्राचीनतर हैं। फिर कोई ५०० वर्ष तक साहित्य नहीं मिलता । ईसा की तीसरी शताब्दी में फिर मध्यकालीन फारसी अथवा पहलवी के लेख तथा ग्रंथ मिलते हैं। सेसेनियन राजाओं के उत्कीर्ण लेखों अतिरिक्त इस भाषा में पारसियों का धार्मिक साहित्य भी मिलता है। अवस्ता का पहलवी अनुवाद आज भी उपलब्ध है। भाषा में विकास के स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। जैसा प्राचीन फारसी में व्याकरणिक रूपों का वाहुल्य था वैसा इस मध्य फारसी में नहीं पाया जाता । विभक्तियों प्रा०फा० जस्त