पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मलयालम कन्नड़ भाषाओं का वर्गीकरण से ही वह अपनी माँ तामिल से पृथक् हो गई थी और भारत के दक्षिण-पश्चिमी समुद्र-तट पर आज बही बोली जाती है। वह ब्राह्मणों के प्रभाव के कारण संस्कृत-प्रधान हो गई है। कुछ मोपले अधिक शुद्ध और देशी मलयालम बोलते हैं, क्योंकि वे आर्य संस्कृति से कुछ दूर ही हैं। इस भाषा में साहित्य भी अच्छा है और तिरुवाकूर तथा कोचीन के राजाओ की .छत्रच्छाया में उसका अच्छा वर्धन और विकास भी हो रहा है। कन्नड़ मैसूर की भाषा है। उसमें अच्छा साहित्य है। उसकी काव्यभाषा अव बड़ी प्राचीन और आर्ष हो गई है। उसका अधिक संबंध तामिल भाषा से है, पर उसकी लिपि तेलुगु से अधिक मिलती है। इस भाषा को भी स्पष्ट विभाशाएँ कोई नहीं हैं। इस द्राविड वर्ग की अन्य विभाषाओं में से तुल एक बहुत छोटे क्षेत्र में चोली जाती है। यद्यपि इसमें साहित्य नहीं है पार काल्डवेल ने उसको विकास और उन्नति की दृष्टि से बहुत उच्च भाषाओं में माना है। कोडगु कन्नड़ और तुलु के बीच की भाषा है। उसमें दोनों के ही लक्षण मिलते हैं 1 भूगोल की दृष्टि से भी वह दोनों के बीच में पड़ती है। होड और काट नीलगिरि के जंगलियों की बोलियाँ हैं। इनमें से होड जाति और उनकी भाषा मरणोन्मुख है । द्राविड़-परिवार की भाषाएँ प्रत्यय-संयोग-प्रधान और अनेकाक्षर होती हैं, पर उनके रूप मुंडा की अपेक्षा कहीं अधिक सरल और कम उपचय करनेवाले होते हैं। द्राविड़ भाषाओं में द्राविड़-परिवार के संयोग वड़ा स्पष्ट होता है और प्रकृति में कभी सामान्य लक्षण विकार नहीं होता। द्राविड़ भाषाओं में निर्जीव और निश्चेतन पदार्थ नपुंसक माने जाते हैं और अन्य शब्दों में पुंल्लिग और स्त्रीलिंग के सूचक पद जोड़ दिए जाते हैं। केवल अन्य पुरुप के सर्वनामों में और कुछ विशेषणों में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग का भेद पाया जाता है। नपुंसक संज्ञाओं का प्रायः बहुवचन भी नहीं होता !