पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/१४४

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ध्वनि और ध्वनि-विकार १२९ ध्वनि-शिक्षा के दो प्रधान अंग हैं--पहला ध्वनियों की उत्पत्ति के स्थान और करण (=जिह्वा का अध्ययन), दूसरा उन प्रयत्नों की परीक्षा ध्वनि-शिक्षा के अंग जो उच्चारण में अपेक्षित होते हैं। इस प्रकार स्थान और प्रयत्न का अध्ययन कर लेने पर ही ध्वनियों का विश्लेषण और वर्गीकरण संभव होता है । ध्वनि-शिक्षा के विद्यार्थी को सबसे पहले उन शरीरावयवों को जान लेना आव. श्यक है जिनसे वाणी अर्थात् शब्द की उत्पत्ति होती है । साधारणत: बोलचाल में जिन अंगों अथवा अवयवों का उपयोग होता है उनमें से मुख्य १-फुकुस अथवा फेफड़े २-काकल ३-अभिकाकल ४-स्वर-तंत्री अथवा ध्वनि-तंत्री ५-कंठपिटक ६- अन्न-मार्ग अथवा अन्न-प्रणाली ---श्वास-मार्ग अथवा श्वास-प्रणाली ८-कंठ-माग, कंठ-बिल अथवा गल बिल ९-घंटी अथवा कौआ १०-कंठस्थान अथवा कंठ अर्थात् कोमल तालु ११--मूर्धा १२--तालू १३-वत्स १४--दंतमूल १५-दंत १६-ओष्ट १४-~जिह्वानीक १८-जिह्वान १९-जिह्वोपान